एक निर्मित प्राणी के दिल की आवाज़
मैंने चाहा रोना, कोई जगह नहीं थी सही।
मैंने चाहा गाना, मिला नहीं कोई गीत।
मैंने चाहा एक निर्मित प्राणी के प्रेम का करना इज़हार।
ऊपर-नीचे ढूंढा, पर कोई वचन न बता पाए,
न बता पाए मुझे होता जो महसूस।
व्यावहारिक और सच्चे परमेश्वर, मेरे भीतर के प्रेम।
स्तुति में आपकी मैं उठाऊँ अपने हाथ, हूँ ख़ुश कि आप आए इस दुनिया में।