पूर्वतः आप राजाओं की तरह राज करना चाहते थे, और आज अभी भी आप को इससे पूर्णतः छुटकारा पाना बाकी है; आप अभी भी राजाओं की तरह राज करना चाहते हो, स्वर्ग को सभांलना और पृथ्वी को सहारा देना चाहते हो। अब, जरा सोचिए: क्या आप ऐसी योग्यता रखते हैं? क्या आप बुद्धिहीन नहीं बने रहते हैं? क्या आप इसी यर्थाथवादिता की खोज में अपने ध्यान को समर्पित करते हैं? आप तो सामान्य मानवता भी नहीं रखते, क्या यह दुखदाई नहीं? इसलिये आज जब हम विजयी होने की बात करते हैं तो गवाही देने व अपनी क्षमता के विकास और सिद्धता के मार्ग में प्रवेश के अलावा अन्य कुछ भी नहीं कहते हैं। कुछ लोग शुद्ध सत्य से थक जाते हैं और जब वे ये सब बातें सामान्य मानवता और लोगों की क्षमता के विकास के विषय देखते हैं, तो वे असंतुष्ट हो जाते हैं। जो सत्य से प्रेम नहीं करते उनको सिद्ध बनाना आसान नहीं होता है। जैसे-जैसे आप परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करते अपने कदमों को बढ़ाते हुए प्रवेश करते हैं, आप का सफाया हो सकता है? चीन के मुख्य भूभाग में किए गए बहुत सारे कार्यों के बाद बड़े पैमाने पर कार्य और बहुत से वचन कहे जाने के बाद क्या परमेश्वर आधे रास्ते में आपको छोड़ देगा? क्या वह लोगों की अगुवाई अथाह कुंड में करेगा? आज की चाबी यह है कि आप मनुष्य के तत्व को जानें, और यह कि आप को किस में प्रवेश करना है, आपको जीवन में प्रवेश की और स्वभाव में परिवर्तन की चर्चा करनी चाहिए और यह कि कैसे सचमुच विजयी होना है, और कैसे पूर्णतः परमेश्वर की आज्ञा को मानना है, कैसे परमेश्वर को अंतिम गवाही देनी है और मृत्युपर्यंत आज्ञाकारी बने रहना है। आपको इन बातों पर केन्द्रित होकर जो बातें वास्तविक और महत्वपूर्ण नहीं लगती अलग कर अस्वीकार करना चाहिए। आज आपको मालूम होना चाहिये कि कैसे विजयी बनें, और लोग विजय उपरांत अपना आचरण कैसा रखते हैं। आप यह कह सकते हैं कि आप विजयी हैं, पर क्या आप मृत्युपर्यंत आज्ञाकारी रहेंगे? संभावनाओं की परवाह किए बगैर आप में पूरे अंत तक अनुसरण करने की क्षमता होनी चाहिए और आपको किसी भी परिस्थितिवश परमेश्वर पर विश्वास नहीं खोना चाहिए। अतंतः आपको गवाही के दो पक्ष प्राप्त करने हैं: अय्यूब की गवाही-मृत्यु तक आज्ञाकारिता और पतरस की गवाही - परमेश्वर के प्रति सर्वोच्च प्रेम। एक मामले में आपको अय्यूब की तरह होना चाहिए, उसके पास कुछ भी सांसारिक संसाधन नहीं थे और शारीरिक पीड़ा से वह घिरा हुआ था, तब भी उसने यहोवा का नाम नहीं त्यागा। यह अय्यूब की गवाही थी। पतरस ने मृत्यु तक परमेश्वर से प्रेम रखा। जब वह मरा - उसे क्रूस पर चढ़ाया गया - तब भी उसने परमेश्वर से प्रेम किया, उसने अपने हित या महिमामयी आशा की या अनावश्यक विचारों को स्थान नहीं दिया। और केवल परमेश्वर से प्रेम करने और परमेश्वर की व्यवस्था को पूर्णतः मानने का निर्णय लिया। गवाही देने से पूर्व आप को ऐसा स्तर हासिल करना होगा, इस से पहले कि आप विजय प्राप्त करने के बाद, सिद्ध बन जायें। आज लोग यदि अपने सार तत्व को और अपने स्तर को सचमुच जानते हैं तो क्या वे तब भी संभावनाओं और आशा को खोजेंगे? जो आप को मालूम होना चाहिए वह यह हैं किः परमेश्वर मुझे सिद्ध करे या ना करे मैं परमेश्वर के पीछे चलूंगा, जो कुछ उसने अभी किया है, वह हमारे लिए किया है, और वह अच्छा है। ताकि हमारा स्वभाव परिवर्तित हो और हम शैतान के चंगुल से छूट जाएं, यह कि, अपवित्र धरती पर रहने के बावजूद हम अशुद्धता से मुक्त हो जायें। गंदगी और शैतान के प्रभाव को झटक कर हम शैतान के प्रभाव को पीछे छोड़ने की क्षमता प्राप्त कर लें। निश्चित रूप से आपसे यही अपेक्षा है, पर परमेश्वर के लिए यह विजय मात्र है, ताकि लोग आज्ञाकारी होने का संकल्प करें और स्वतः को परमेश्वर के अभिप्राय हेतु पूर्णतः अर्पित करें, यही सब की जरूरत है। आज बहुत से लोगों पर विजय पाई जा चुकी है, परंतु उनके अंदर बहुत कुछ है जो विद्रोही और अवज्ञाकारी है। लोगों की सच्चाई का कद अब भी बहुत छोटा है, वे तभी ऊँचे होते हैं जब संभावनाएं और आशा होती है, उनकी अनुपस्थिति में वे नकारात्मक हो जाते हैं, और यहां तक परमेश्वर को छोड़ देने का विचार करते हैं। लोगों को सामान्य मानवता से जीवन पाने की अधिक इच्छा नहीं होती। यह नहीं चलेगा! इसलिये हमें अब भी विजय की बात करनी चाहिए। सचमुच, सिद्धता विजय के साथ ही प्रगट होती है, आपके विजयी होते ही, सिद्धता के प्रथम प्रभाव की भी प्राप्ति होती है। विजय पाने और सिद्धता पाने में अंतर लोगों में आए परिर्वतन पर आधारित होता है, विजय पाना सिद्धता पाने का प्रथम चरण है, परंतु यह साबित नहीं करता कि वे पूर्णतः सिद्ध बन गए, ना ही यह साबित करता कि परमेश्वर ने उन्हें पूरी तरह स्वीकार कर लिया है। लोगों के विजयी होने के बाद, उनके स्वभाव में कुछ परिवर्तन आते हैं परंतु ये परिवर्तन उन लोगों कि तुलना में बहुत कम है जिन्हें परमेश्वर ने ग्रहण कर लिए है। आज जो हो रहा है वह यह है कि लोगों को सिद्ध बनाने उन्हें पहले जीता जा रहा है और अगर उन्हें जीतने में असफल हो जाते हैं तो आप के पास उन्हें सिद्ध करने और परमेश्वर द्वारा पूर्णतः ग्रहण योग्य बनाने का कोई उपाय नहीं रहता। आप सिर्फ ताड़ना और न्याय की कुछ बातें ही पाएंगे, जो कि आपके हृदय परिवर्तन हेतु अपूर्ण होगी। तो आप उनमें से एक होगें जिन्हें त्याग दिया गया है, यह इस बात से अलग ना होगा कि मानो जैसे मेज पर स्वादिष्ट भोजन देखकर भी उसे खा नहीं सकें, क्या यह दुखदायी नहीं? और इसलिये आपको बदलाव ग्रहण करना होगा, चाहे विजय पाने को चाहे सिद्ध बनाने को, दोनों का संबंध इस बात से है कि क्या आपमें बदलाव आये हैं या नहीं, आप आज्ञाकारी हैं या नहीं-और इससे यह निश्चित होगा कि क्या आप परमेश्वर द्वारा ग्रहण किए जाएंगे या नहीं। जान लीजिए कि"विजय पाना और“सिद्धता पाना”केवल आपके अंदर आए बदलाव और आज्ञाकारिता पर निर्भर करता है। साथ ही इस पर कि आपका परमेश्वर के लिए प्रेम कितना सच्चा है। आज जिस बात की जरूरत है, वह यह कि आप पूर्णतः सिद्ध हो सकते हैं, परंतु पहले आप पर विजय पाना आवश्यक है, आपको परमेश्वर की ताडना और न्याय का परिपूर्ण ज्ञान होना अनिवार्य है, व्यक्ति को उसका अनुसरण करने का विश्वास होना चाहिए ताकि ऐसे व्यक्ति बनें जो बदलाव और उसके प्रभाव को ग्रहण कर सके। तब आप ऐसे होंगे जो सिद्ध कहलाए। आपको यह समझना होगा कि सिद्ध किए जाने के दौरान य आप विजयी किये जायेंगे और विजयी होने के दौरान आप सिद्ध होगें। आज, आप सिद्ध होने का प्रयास कर सकते हैं अपने बाहरी मनुष्यत्व में बदलाव और क्षमताओं में विकास भी कर सकते हैं, परंतु प्रमुख सिद्धांत यह है कि आप यह समझ सकें कि जो कुछ आज परमेश्वर कर रहे हैं वह सार्थक और लाभकारी हैः आप जिस अपवित्रता में रहते हैं,यह आपको उस अपवित्रता से बाहर निकलने और उस गंदगी को झटकने की क्षमता प्रदान करेगी, यह आपको शैतान के प्रभाव से पार पाने में और शैतान के अंधकारमय प्रभाव को पीछे छोड़ने की क्षमता प्रदान करेगी और इन बातों पर ध्यान देने पर, आप इस अपवित्र भूमि पर सुरक्षा प्राप्त करते हैं। आखिरकार आपको क्या गवाही देने को कहा जाएगा? आप एक अपवित्र भूमि पर रहते हुए भी पवित्र रह सकेंगे, और आगे फिर अपवित्र और अशुद्ध नहीं होगें, आप शैतान के अधिकार क्षेत्र में रहकर भी अपने आपको उसके प्रभाव से छुड़ा लेते हैं, और शैतान द्वारा ग्रसित और सताए नहीं जाते, और आप सर्वशक्तिमान के हाथों में रहते हैं। यही गवाही है, और शैतान से युद्ध में विजय का साक्ष्य है। आप शैतान को त्यागने में सक्षम है, जो जीवन आप जीते हैं उसमें शैतान प्रकाशित नहीं होता, परंतु यह वही है जो परमेश्वर ने मनुष्य के सृजन के समय चाहा था कि मनुष्य इन्हें प्राप्त करे: सामान्य मानवता, सामान्य युक्तता, सामान्य अंतर्दृष्टि, परमेश्वर के प्रेम हेतु सामान्य संकल्पशीलता, और परमेश्वर के प्रति निष्ठा। यह परमेश्वर के प्राणी मात्र की गवाही है। आप कहते हैं कि "हम अपवित्र भूमि पर रहते हैं, परंतु परमेश्वर की सुरक्षा के कारण, उसकी अगुवाई के कारण क्योंकि उसने हम पर विजय प्राप्त की है, हमने शैतान के प्रभाव से मुक्ति पाई है। कि हम आज्ञा मान सकें यह भी इस बात का प्रभाव है कि परमेश्वर ने हम पर विजय पाई है, और यह इसलिये नहीं कि हम अच्छे हैं, या हम सहज भाव से परमेश्वर से प्रेम करते हैं। यह इसलिये कि परमेश्वर ने हमें चुना, और हमें पूर्वनिर्धारित किया, क्योंकि हम पर विजय पाई गई है, हम उसकी गवाही धारण करने योग्य हैं, और उसकी सेवा कर सकते हैं, ऐसा इसलिये भी कि उसने हमें चुना, और हमारी रक्षा की, कि हमें शैतान के अधिकार से बचाया और छुड़ाया कि हम गंदगी को पीछे छोड़ लाल अजगर के देश में शुद्ध हो सकें।"साथ ही, जैसे आज आप बाहरी रूप से जियेंगे वह यह प्रगट करेगा कि आप सामान्य मानवता धारण करते हैं, कि आप की बातें तर्कपूर्ण हैं, कि आप एक सामान्य व्यक्ति की तरह हैं। जब दूसरे आपको देखें तो वे यह ना कहें कि क्या यह महान बड़े अजगर का स्वरूप नहीं? बहनों का स्वभाव बहनों की तरह नहीं है, भाइयों का स्वभाव भाइयों की तरह नहीं है, उनमें संतो का सा कुछ भी शिष्टाचार नहीं। वे ये ना कहें, कोई आश्चर्य नहीं कि परमेश्वर ने कहा कि वे मोआब के वंशज हैं, जो बिल्कुल सही था। अगर लोग आपको देखकर कहें, "हालांकि परमेश्वर ने आपको मोआब का वंशज कहा है, परंतु जिस तरह का जीवन आप जीते हो वह ये साबित करता कि आपने शैतान के प्रभाव को पीछे छोड़ दिया है; हालांकि वे बातें अब भी आपके भीतर हैं फिर भी आप उन चीजों की ओर से मुंह मोडने में सफल रहे।" तब यह दिखाता है कि आप पर पूर्णतः विजय प्राप्त कर ली गई है। आप विजय जिस पर प्राप्त कर ली गई है और सुरक्षित हो गये हो, कहोगे, "यह सत्य है कि हम मोआब के वंशज हैं, परंतु हमें परमेश्वर ने बचा लिया है, हालांकि मोआब के वंशज त्यागे गए और श्रापित थे, और इस्रायलियों द्वारा नास्तिकों निर्वासित किए गए - यह परमेश्वर की आज्ञानुसार था, यह सत्य है, और सबके द्वारा मान्य है। परंतु आज हम उस प्रभाव से बच निकले हैं। हम अपने पुरखों का तिरस्कार करते हैं, हम अपने पुरखों की ओर अपनी पीठ फेर लेना चाहते हैं, उन्हें पूर्णतः त्यागकर परमेश्वर की पूर्ण व्यवस्था का पालन करना चाहते हैं, परमेश्वर की इच्छानुसार चलना चाहते हैं और वह हमसे जिन बातों कि आशा करता है उन्हें हम हासिल करना चाहते हैं। और परमेश्वर की इच्छा को पूरी करने का संतोष पाना चाहते हैं। मोआब ने परमेश्वर को धोखा दिया, उसने परमेश्वर की इच्छा अनुसार कार्य नहीं किया और परमेश्वर ने उस से घृणा की। परंतु हमें परमेश्वर के हृदय का ख्याल रखना चाहिये , और आज जब कि हम परमेश्वर की इच्छा को जानते हैं, तो हम परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकते, और हमें अपने पुरखों को भी त्यागना होगा!" पहले हमने महान लाल अजगर को त्यागने की घोषणा की - और आज खासतौर से लोगों के पुरातन पुरखों को त्यागने की घोषणा करते हैं। यह लोगों की विजय की एक गवाही है, और आज आपने कैसे प्रवेश किया यह मायने नहीं रखता परंतु आपकी गवाही इस क्षेत्र में कमजोर नहीं होनी चाहिए।
लोगों की क्षमताएं बहुत निर्बल हैं, उनमें सामान्य मानवता की बेहद कमी है, उनकी प्रतिक्रिया धीमी, अत्यंत सुस्त है, शैतान की भ्रष्टता ने उन्हें जकड़ कर मंद बुद्धि कर दिया है, और वे हालांकि एक दो वर्षों में पूर्णतः परिवर्तित नहीं हो सकते, उन्हें सहयोग करने का संकल्प लेना होगा। यह कहा जा सकता है कि यह भी शैतान के समक्ष गवाही है। आज की गवाही विजय के कार्य से प्राप्त प्रभाव है, साथ ही साथ भविष्य में अनुकरण करने वालों हेतु नमूना और आदर्श है। भविष्य में, यह सब राष्ट्रों में फैल जाएगी, चीन में जो किया गया वह सब राष्ट्रों में फैल जाएगा। मोआब के वंशज विश्व में सब लोगों में निम्न है। कुछ लोग पूछते हैं, कि क्या हाम के वंशज सबसे निम्न नहीं? महान लाल अजगर की संतान और हाम के वंशज अलग चीजों का प्रतिनिधित्व करते हैं, और हाम के वंशज एक अलग मामला हैः यह मायने नहीं रखता कि वे किस प्रकार से श्रापित हैं, वे फिर भी नूह के वंशज हैं, मोआब उत्पत्ति से ही शुद्ध नहीं था, वह व्याभिचारिता से आया था, और यही अलगाव है, हालांकि दोनों श्रापित हैं, उनकी हैसियत समान नहीं थी, और इसलिए मोआब के वंशज सब लोगों में निम्न हैं - और सर्वस्व निम्न लोगों की विजय से अधिक संतोषजनक सत्य कुछ भी नहीं। अंतिम समय के कार्य सारे नियम तोड़ते हैं, और यह मायने नहीं रखता कि आप सजा पाए हुए हैं या श्रापित हैं, जब तक आप मेरे कार्य में सहायक हैं, और विजय के कार्य हेतु लाभकारी हैं, और यह मायने नहीं रखता कि आप मोआब के वंशज हो या महान लाल अजगर की संतान, जब तक आप परमेश्वर के प्राणी होने की जिम्मेदारी का इस स्तर पर निर्वाह करते हुए अपना सर्वोत्तम देते हो, तब ही निर्धारित प्रभाव प्राप्त होगा। आप महान लाल अजगर की संतान और मोआब के वंशज हो; कुल मिलाकर, जो कोई लहू और मांस से बना है, वह परमेश्वर का प्राणी है, और उसे परमेश्वर ने ही बनाया है। आप परमेश्वर के प्राणी हैं, आपकी अपनी कोई पसंद नहीं होनी चाहिये और यही आपका दायित्व है। आज सृजनहार के कार्य समस्त विश्व के लिये हैं। आप किसी भी वंश के क्यों ना हो परंतु सबसे पहले आप परमेश्वर के एक प्राणी हो, मोआब के वंशज - परमेश्वर के प्राणियों का एक हिस्सा हो, बस यह कि आपका मूल्य निम्न है चूंकि आज परमेश्वर के कार्य समस्त प्राण्यिों में संचालित हैं, और समस्त ब्रम्हांड उसका लक्ष्य है, सृजनहार किसी भी जन, तत्व या वस्तु का अपने कार्य करने हेतु चयन करने को स्वतंत्र है। वह तब तक इस बात की चिंता नहीं करता कि आप किस के वंशज हैं जब तक कि आप उसके एक प्राणी हैं, जब तक कि आप उसके कार्य के लिये उपयोगी हैं - उसकी विजय और गवाही के कार्य - बिना किसी संदेह के आप में वह अपना कार्य करता है। यह लोगों की रूढ़िवादी सोच को कुचल देता है, जो यह है कि परमेश्वर कभी भी अन्य जातियों के मध्य कार्य नहीं करेगा, विशेषतः जो निम्न और श्रापित हैं, उनके लिए जो श्रापित हैं, उनकी आगामी पीढ़ियां सदाकाल श्रापित रहेंगी उन्हें कभी भी उद्धार का अवसर प्राप्त नहीं होगा, परमेश्वर कभी भी अन्य जाति की भूमि पर उतर कर कार्य नहीं करेगा और अपवित्र भूमि पर कभी अपने कदम नहीं रखेगा, क्योंकि वो पवित्र है। जान लें कि परमेश्वर समस्त प्राणियों का परमेश्वर है, वह स्वर्ग, पृथ्वी और समस्त वस्तुओं पर अधिकार रखता है, और केवल इस्राएल के लोगों का परमेश्वर नहीं है। इसलिए, चीन में यह कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है, और क्या यह समस्त राष्ट्रों में नहीं फैलेगा? भविष्य की महान गवाही चीन तक सीमित ना रहेगी, यदि जब परमेश्वर ने आप को जीत लिया है, तो क्या दुष्ट आत्माएं मान जाएंगी? वे विजय किये जाने का अर्थ या परमेश्वर की सामर्थ को नहीं समझतीं, और केवल जब परमेश्वर के समस्त विश्व में चुने हुए लोग इस कार्य के चरम प्रभाव का अवलोकन करेंगे तब सब प्राणी जीत लिए जाएंगे; कोई भी मोआब के वंशजों से अधिक पिछड़ा और भ्रष्ट नहीं, जब इन लोगों पर विजय पाई जा सकती है - जो कि सबसे अधिक भ्रष्ट हैं, जिन्होंने परमेश्वर को स्वीकार नहीं किया, या इस बात पर विश्वास नहीं किया कि परमेश्वर है, जब जीत लिए जायेंगे, और अपने मुख से परमेश्वर को स्वीकार करेंगे, उसकी स्तुति करेंगे और उससे प्रेम करेंगे - क्या यह विजय की गवाही होगी? हालांकि आप पतरस नहीं, परंतु आप में पतरस का चरित्र जीवंत है, आप पतरस की गवाही धारण करने योग्य हो, और अय्यूब की भी, और यही महान गवाही है। अंततः आप कहेगें: हम इस्राएली नहीं है, परंतु मोआब के त्यागे हुए वंशज हैं, हम पतरस नहीं, उसकी सी क्षमता हम में नहीं, या हम अय्यूब के समान नहीं, और हम पौलुस का परमेश्वर के लिए कष्ट सहने के संकल्प से स्वयं की तुलना नहीं कर सकते, उसकी तरह परमेश्वर को समर्पित नहीं हो सकते, हम इतने पिछड़े हुए हैं इसलिए हम परमेश्वर की आशीषों का आनंद लेने के अयोग्य हैं। परमेश्वर ने फिर भी आज हमें उठाया है, इसलिए हम परमेश्वर को संतुष्ट करें – हालांकि न तो हम में क्षमता है और न ही पात्रता, लेकिन हम परमेश्वर को संतुष्ट करने को तैयार हैं - यही हमारा संकल्प है। हम मोआब के वंशज हैं, और हम श्रापित थे। यह परमेश्वर की आज्ञा थी, और हम इसे बदलने में असमर्थ हैं, परंतु हमारा जीवन और हमारा ज्ञान बदल सकता है, और हम परमेश्वर को संतुष्ट करने हेतु संकल्पित हैं। जब आप के पास यह संकल्प हो, यह सिद्ध करेगा कि आप विजय हेतु परीक्षण से निकल चुके हैं।
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