जैसे-जैसे मेरी आवाज़ उच्चारित हो रही है, जैसे-जैसे मेरी आँखों से ज्वाला निकल रही है, मैं पूरी पृथ्वी पर निगरानी रख रहा हूँ, मैं पूरे ब्रह्मांड का अवलोकन कर रहा हूँ। संपूर्ण मानवता मुझ से प्रार्थना कर रही है, मुझे टकटकी लगाकर देख रही है, मुझसे मेरे क्रोध को समाप्त करने के लिए विनती कर रही है, और मेरे विरुद्ध अब विद्रोह नहीं करने की शपथ खा रही है। किन्तु अब यह अतीत नहीं है; यह वर्तमान है। कौन मेरी इच्छा को पीछे मोड़ सकता है? निश्चित रूप से मनुष्यों के हृदयों के भीतर का आह्वान तो नहीं, और न ही उनके मुँह के वचन? यदि मेरी वजह से नहीं है, तो कौन वर्तमान तक जीवित रहने में समर्थ रहा है? मेरे मुँह से निकले हुए वचनों के द्वारा के सिवाय कौन जीवित रहता है? कौन मेरी चैकन्नी निगाहों के नीचे नहीं पड़ता है? जब मैं संपूर्ण पृथ्वी पर अपने नए कार्य को करता हूँ, तो कौन कभी भी इससे बच निकलने में समर्थ रहा है? क्या ऐसा हो सकता है कि पर्वत अपनी ऊँचाई की वजह से इस से बच निकल सकते हैं? क्या ऐसा हो सकता है कि जल, अपनी विस्तृत विशालता के द्वारा, इससे बचाव करने में समर्थ है? मेरी योजना में, मैंने किसी भी चीज़ को कभी भी आसानी से जाने नहीं दिया है, और इसलिए कोई ऐसा व्यक्ति या कोई चीज़ नहीं रही है, जो मेरे हाथों के चंगुल से धोखा दे कर निकल गया हो।