परमेश्वर के वचनों के प्रति लोग जितने अधिक ग्रहणशील होते हैं, वे उतने ही अधिक प्रबुद्ध हो जाते हैं और परमेश्वर के ज्ञान का अनुसरण करने के लिए उन्हें उतनी ही अधिक भूख और प्यास होती है। केवल उनको जो परमेश्वर के वचनों को पाते हैं, अधिक गहरे और समृद्ध अनुभव प्राप्त होते हैं; केवल वे ही हैं जिनके जीवन अधिक से अधिक फलते-फूलते हैं। हर कोई जो जीवन का अनुसरण करता है, उन सब को इसे ऐसे मानना चाहिए जैसे कि यह उनका अपना काम हो, और उनकी यह भावना होनी चाहिए कि वे परमेश्वर के बिना नहीं रह सकते, परमेश्वर के बिना एक भी सफलता नहीं है, और परमेश्वर के बिना सब शून्य है। उन्हें पवित्र आत्मा की उपस्थिति के बिना कुछ भी न करने का, और आगे ऐसा कुछ भी करने के लिए अनिच्छुक होने का संकल्प करना चाहिए, यदि उनके कार्य फल न दें। उन्हें लिप्त नहीं होना चाहिए। जीवन के अनुभव परमेश्वर के ज्ञान और मार्गदर्शन के माध्यम से आते हैं, और वे तुम सब के व्यक्तिपरक प्रयासों का फल भी हैं। तुम सभी के पास अपने जीवन के अनुभव में अपने लिए बहाने न करने की आवश्यकता होनी चाहिए।
कभी-कभी तुम्हारी परिस्थितियां सामान्य नहीं होतीँ—तुम परमेश्वर की उपस्थिति खो देते हो और तुम प्रार्थना करते समय उसे महसूस नहीं कर सकते हो; ऐसे समय में डर लगना सामान्य है। तुम्हें तत्काल खोजने के लिए निकल आना चाहिए वर्ना परमेश्वर तुमसे और दूर हो जाएगा, और पवित्र आत्मा का तुम्हारे पास एक या दो दिन, यहाँ तक कि एक या दो महीने के लिए, साथ नहीं होगा, और उससे भी अधिक, तुम उनके कार्य के बिना रह जाओगे। जब तुम इस प्रकार की स्थिति का सामना करते हो तो तुम कुछ हद तक स्तब्ध रह जाते हो; तुम एक बार फिर शैतान द्वारा बंदी बना लिए जाते हो, और कुछ भी कर सकते हो—पैसे के लिए प्यार और लालसा, भाइयों और बहनों को धोखा देना, फिल्म और वीडियो देखना, महजोंग खेलना, यहाँ तक कि धूम्रपान और मदिरा-सेवन—किसी भी अनुशासन के अधीन हुए बिना। तुम्हारा दिल परमेश्वर से दूर हो जाता है, तुम चुपके से स्वतंत्र बनने की कोशिश करते हो, और तुम अपनी मनमानी से उसके कार्य पर निर्णय लेते हो। कुछ मामलों में यह इतना गंभीर हो जाता है कि लोग झेंप या शर्मिंदगी के बिना विपरीत लिंग के साथ पाप करते हैं। ऐसे लोगों को पवित्र आत्मा के द्वारा त्याग दिया गया है और वास्तव में, वे लंबे समय तक पवित्र आत्मा के काम के बिना रह गए हैं। तुम उनमें केवल यही देख सकते हो कि वे अधिकाधिक भ्रष्ट होते जाते हैं, वे अपने बुरे हाथों को आगे, और आगे बढ़ाते हैं, और अंत में वे इस तरह के मार्ग के अस्तित्व से इनकार करते हैं—वे अपने पापों के माध्यम से शैतान के कैदी बन जाते हैं। यदि तुमको पता चलता है कि तुम्हारे पास पवित्र आत्मा की उपस्थिति तो है लेकिन उसका कार्य नहीं, तो तुम पहले से ही एक बहुत खतरनाक स्थिति में हो। जब तुम पवित्र आत्मा की उपस्थिति महसूस नहीं कर सकते, तो तुम मृत्यु की कगार पर हो। यदि तुम अभी भी पश्चाताप करने में असफल रहते हो, तो तुम पूरी तरह से शैतान को लौटा दिए जाओगे और उन लोगों में से एक हो जाओगे जो हटा दिए गए हैं। इसलिए जब तुमको यह पता लगे कि तुम एक ऐसी अवस्था में हो जहाँ पर तुम्हारे पास सिर्फ पवित्र आत्मा की उपस्थिति तो है (जैसे पाप नहीं करना, व्यभिचार न करना या परमेश्वर का खुला विरोध न करना), लेकिन तुम्हारे पास पवित्र आत्मा के कार्य की कमी है (जैसे कि, जब तुम प्रार्थना करते हो तब तुम द्रवित नहीं होते हो, जब तुम परमेश्वर के शब्दों को खाते-पीते हो तो तुम परमेश्वर से कोई स्पष्ट ज्ञान और रोशनी प्राप्त नहीं करते हो, तुम परमेश्वर के शब्दों को खाने-पीने के बारे में आलसी हो, हमेशा जीवन में विकास की कमी बनी रहती है, लंबे समय तक कोई महत्वपूर्ण प्रकाश नहीं पाया), इन समय पर तुमको विशेष सावधान रहना चाहिए। तुम लिप्त नहीं रह सकते या जिद नहीं कर सकते। पवित्र आत्मा की उपस्थिति किसी भी समय गायब हो सकती है, इसलिए ये परिस्थितियाँ खतरनाक हैं। यदि तुम इस तरह की अवस्था का सामना करते हो, तो तुमको शीघ्रता से संशोधन करने चाहिए। सबसे पहले, तुमको पश्चाताप करने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, परमेश्वर की दया के लिए विनय तथा अधिक निष्ठा से प्रार्थना करनी चाहिए; उससे भी अधिक, परमेश्वर के शब्दों को खाने-पीने के लिए तुम्हें अपने ह्रदय को शांत करना चाहिए, और इस आधार पर तुमको और अधिक प्रार्थना करनी चाहिए। भजन गाने में, प्रार्थना करने में, परमेश्वर के शब्दों को खाने-पीने में, और अपना कर्तव्य पूरा करने में अपने प्रयासों को मजबूत करो। जब तुम सबसे कमजोर होते हो, तो तुम्हारे दिल को शैतान द्वारा आसानी से कब्जे में ले लिया जाता है; यदि ऐसा होता है, तो तुम्हारा दिल परमेश्वर के सामने से दूर हटा दिया जाएगा और शैतान को लौटा दिया जाएगा; इसके बाद तुम्हारे पास पवित्र आत्मा की उपस्थिति न होगी, और पवित्र आत्मा के काम को पुनः पाना तुम्हारे लिए अत्यधिक कठिन होगा। यह बेहतर है कि पवित्र आत्मा के काम की तलाश तब करें जब तुम्हारे पास उसकी उपस्थिति हो, परमेश्वर से तुम्हें और अधिक प्रबुद्ध करने के लिए कहो, और उसे तुम से दूर न जाने दो। तुम्हें प्रार्थना करनी चाहिए, भजन गाने चाहिए, अपने कार्य करने चाहिए, और परमेश्वर के शब्दों को खाना-पीना चाहिए ताकि शैतान को अपना काम करने का अवसर ही न मिले। ऐसा करने से, तुम पवित्र आत्मा का कार्य हासिल करोगे। यदि तुम इस तरह से इसे ठीक नहीं करते हो, और बस रुके रहते हो, तो जब तुम पवित्र आत्मा की उपस्थिति खो देते हो, इसका सही होना मुश्किल हो जाएगा, जब तक कि पवित्र आत्मा विशेष रूप से तुम्हें द्रवित, प्रकाशित और प्रबुद्ध न करे; फिर भी, तुम्हारी अवस्था एक से दो दिन या आधे साल के अंतराल के भीतर पुनर्प्राप्ति के योग्य नहीं होगी। यह सब इसलिए है क्योंकि लोग सुस्त हैं और उचित तरीके से अनुभव में आगे बढ़ने में सक्षम नहीं हैं; इसलिए, उन्हें पवित्र आत्मा द्वारा त्याग दिया जाता है। यहाँ तक कि अगर तुम ठीक हो भी गए हैं, तो तुम परमेश्वर के वर्तमान कार्य पर बहुत स्पष्ट नहीं होगे क्योंकि तुम अपने जीवन के अनुभव में बहुत पीछे हो, मानो कि यह अचानक लुढ़क गया हो। क्या यह जीवन के लिए एक घातक काम नहीं है? लेकिन मैं ऐसे लोगों को बताता हूँ: पश्चाताप करने में इतनी देर नहीं हुई है कि तुम इसे अब कर ही न सको, लेकिन एक शर्त है कि तुम्हें कड़ी मेहनत करनी होगी और तुम अब आलसी नहीं हो सकते। यदि अन्य लोग रोजाना पांच बार प्रार्थना करते हैं, तो तुम्हें दस बार प्रार्थना करनी चाहिए; अगर दूसरे लोग रोजाना दो घंटे के लिए परमेश्वर के शब्द खाते-पीते हैं, तो तुम्हें चार से छह घंटे खर्च करने चाहिए; अगर दूसरे लोग दो घंटे के लिए भजन सुनते हैं, तो तुम्हें इसमें कम से कम आधा दिन लगाना चाहिए। परमेश्वर के सामने अपने आप को प्रायः शांत करो और परमेश्वर के प्रेम के बारे में सोचो; जब तक तुम द्रवित नहीं हो जाते, जब तक तुम्हारा दिल उसकी तरफ घूम न जाए, और जब तक कि तुम उससे दूर जाने की हिम्मत ही न कर सको, तुम्हें फल प्राप्त नहीं होगा। केवल इन अभ्यासों के माध्यम से तुम अतीत की तरह एक सामान्य अवस्था को पुनर्प्राप्त कर सकते हो।
कुछ लोग उत्साहपूर्वक खोज तो करते हैं, लेकिन सही मार्ग में प्रवेश नहीं कर सकते। इसका कारण यह है कि वे बहुत लापरवाह हैं और आध्यात्मिक मामलों पर बिलकुल ध्यान ही नहीं देते। उन्हें नहीं पता कि परमेश्वर के वचनों का अनुभव कैसे करना है, वे नहीं जानते कि पवित्र आत्मा की उपस्थिति या पवित्र आत्मा का कार्य क्या है। ये लोग उत्साही लेकिन भ्रमित हैं; वे जीवन का अनुसरण नहीं कर रहे हैं। क्योंकि वे परमात्मा को किंचित भी नहीं जानते हैं, न ही पवित्र आत्मा के कार्य की गतिशीलता को जानते हैं, और वे स्वयं की आध्यात्मिक स्थिति से भी परिचित नहीं हैं। क्या यह भ्रमित विश्वास का एक प्रकार नहीं है? ऐसे लोगों को कुछ भी नहीं मिलेगा, चाहे वे बिलकुल अंत तक तलाश करें। परमेश्वर में मनुष्य के विश्वास का और जीवन में विकास का मूल यह समझने में निहित है कि परमेश्वर तुम्हारे अनुभवों के माध्यम से कौन-से कार्य करता है, परमेश्वर कितना प्यारा है, और तुम उसकी इच्छा को कैसे समझो ताकि तुम परमेश्वर की सभी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित हो सको, उसके वचन तुममें कार्यान्वित होकर तुम्हारा जीवन बन जाएँ, और परमेश्वर संतुष्ट हो। यदि तुम्हारे पास केवल एक भ्रमित प्रकार का विश्वास मात्र है, यदि तुम आध्यात्मिक मामलों या जीवन के स्वभाव में परिवर्तन से संबंधित बातों पर ध्यान नहीं देते हो, और तुम सच्चाई की ओर प्रयास नहीं करते हो, तो क्या तुम उनकी इच्छा को समझ पाओगे? यदि तुम परमेश्वर की अपेक्षाओं को नहीं समझते हो, तो तुम अनुभव प्राप्त नहीं कर सकोगे, और तुम्हें अभ्यास के लिए पथ नहीं मिलेगा। परमेश्वर के वचनों का अनुभव करने का केंद्र-बिंदु इस बात पर ज़ोर देने में है कि परमेश्वर के वचन तुम्हारे भीतर क्या प्रभाव लाते हैं, और इसके द्वारा परमेश्वर को जानने में। यदि तुम केवल परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हो लेकिन उन्हें कैसे अनुभव करना यह नहीं जानते, तो क्या इससे यह नहीं मालूम पड़ता कि तुम्हारे पास आध्यात्मिक समझ नहीं है? चूंकि अधिकांश लोग इस समय परमेश्वर के शब्दों का अनुभव नहीं कर सकते हैं, वे उसके कार्य को नहीं जानते; क्या यह अभ्यास में कमी नहीं है? यदि वह बात बनी रहती है, तो समृद्ध अनुभव और जीवन में विकास कब हासिल किये जा सकेंगे? क्या यह खोखली बात नहीं होगी? तुममें से कई लोग मतों पर ध्यान देते हैं; तुम्हें आध्यात्मिक चीजों की कोई समझ नहीं है, लेकिन फिर भी तुम लोग चाहते हो कि परमेश्वर तुम्हें कुछ महान कार्य के लिए इस्तेमाल करे और उसके द्वारा तुम्हें आशीर्वाद दे। यह यथार्थवादी नहीं है! इसलिए, तुम सब को इस कमी को पूरा करना चाहिए ताकि तुम लोग अपने आध्यात्मिक जीवन में सही मार्ग में प्रवेश कर सको, सच्चा अनुभव प्राप्त कर सको, और वास्तव में परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश कर सको।
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