2017/11/14

भ्रष्ट मनुष्य परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है

मनुष्य, शैतान के प्रभाव से मुक्ति के बिना बेड़ी में बँधा हुआ, अंधकार के प्रभाव के आवरण में रह रहा है। और मनुष्य का स्वभाव, शैतान के द्वारा परिवर्तित होकर, तेज़ी से भ्रष्ट होता जा रहा है। दूसरे शब्दों में, मनुष्य, परमेश्वर को वास्तव में प्यार करने में असमर्थ, निरंतर अपने भ्रष्ट शैतानी स्वभाव में रहता है। इसलिए, यदि मनुष्य परमेश्वर को प्यार करने की इच्छा करता है, तो उसे स्वयं को सही मानना, आत्म-महत्व, घमंड, अहंकार तथा इसी तरह की अपनी चीजों को अवश्य निकाल देना चाहिए जो शैतान के स्वभाव से संबंधित हैं। अन्यथा, मनुष्य का प्रेम अशुद्ध प्रेम, पूरी तरह शैतान का प्रेम है, और ऐसा प्रेम है जो परमेश्वर का अनुमोदन बिल्कुल नहीं प्राप्त कर सकता है।यदि मनुष्य को प्रत्यक्ष रूप से पवित्र आत्मा द्वारा पूर्ण नहीं बनाया जाता है, उसके साथ निपटा नहीं जाता है, उसे तोड़ा, काट-छाँट, अनुशासित, ताड़ित, या शुद्ध नहीं किया जाता है तो कोई भी परमेश्वर को वास्तव में प्यार नहीं कर सकता है। यदि तुम कहो कि आंशिक रूप से तुम्हारा स्वभाव परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए तुम परमेश्वर को सच्चा प्रेम कर सकते हो, तो तुम ऐसे व्यक्ति हो जो घमंड में वचन बोलता है और तुम एक हास्यास्पद मनुष्य हो। ऐसे मनुष्य ही प्रधान दूत हैं! मनुष्य की अंतर्निहित प्रकृति प्रत्यक्ष रूप से परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती है। मनुष्य को इसे परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने के माध्यम से त्यागना है, फिर परमेश्वर की इच्छा पर ध्यान देना और उसकी इच्छा को संतुष्ट करना है और इससे पहले कि उसके जीवत रहने को परमेश्वर द्वारा अनुमोदित किया जाए, उसे पवित्र आत्मा के कार्य से गुजरना है। देह में रहने वाला कोई भी व्यक्ति परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है, जब तक कि उसका पवित्र आत्मा द्वारा उपयोग न किया गया हो। हालाँकि, यहाँ तक कि ऐेसे व्यक्ति के स्वभाव को और जिस जीवन को वह व्यतीत करता है उसे पूर्णतः परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करना नहीं कहा जा सकता है; केवल यही कहा जा सकता है कि वह जो जीवन व्यतीत करता है वह पवित्र आत्मा के द्वारा नियंत्रित होता है। ऐसे व्यक्ति का स्वभाव परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है।
यद्यपि मनुष्य का स्वभाव परमेश्वर द्वारा नियत किया जाता है—यह अनापत्तिजनक है और इसे सकारात्मक चीज माना जा सकता है—किंतु इसे शैतान द्वारा परिवर्तित किया गया है। इसीलिए मनुष्य का समस्त स्वभाव शैतान का ही स्वभाव है। कोई मनुष्य कह सकता है कि स्वभाव से, परमेश्वर अपने कार्य में स्पष्टवादी है, और कि वह भी इसी प्रकार से व्यवहार करता है; उसका भी इस तरह का चरित्र है, और इसलिए वह कहता है कि उसका स्वभाव परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है। यह किस प्रकार का मनुष्य है? क्या भ्रष्ट शैतानी स्वभाव परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर सकता है? जो कोई भी घोषणा करता है कि उसका स्वभाव परमेश्वर का प्रतिनिधि है, वह परमेश्वर की ईशनिन्दा करता है, और यह पवित्र आत्मा का अपमान है! यह देखते हुए कि पवित्र आत्मा किस प्रकार से कार्य करता है, पृथ्वी पर परमेश्वर का मुख्य कार्य केवल जीतना है, इसलिए मनुष्य का अधिकांश शैतानी स्वभाव शुद्ध नहीं किया गया है। मनुष्य जो जीवन जी रहा है वह अभी भी शैतान की छवि है। यह मनुष्य की अच्छाई है और मनुष्य की देह के कार्य-कलापों का प्रतिनिधित्व करता है। अधिक सटीक रूप से, यह शैतान का प्रतिनिधित्व करता है और परमेश्वर का बिल्कुल भी प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है। यहाँ तक कि यदि मनुष्य परमेश्वर को पहले से ही इस हद तक प्यार करता हो कि वह पृथ्वी पर वह स्वर्ग के जीवन का आनन्द लेने में, इस तरह के वक्तव्यों को कहने में समर्थ हो जैसे किः "परमेश्वर! मैं तुझे पर्याप्त रूप से प्यार नहीं कर सकता हूँ," और उच्चतम क्षेत्र तक पहुँच गया हो, तब भी तुम नहीं कह सकते हो कि वह परमेश्वर में जीवन यापन करता है या परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि मनुष्य का सार परमेश्वर के सार से विपरीत है। मनुष्य कभी भी परमेश्वर में जीवन यापन नहीं कर सकता है, परमेश्वर तो बिल्कुन नहीं बन सकता है। पवित्र आत्मा के नियंत्रण में मनुष्य जो जीवन यापन करता है, यह केवल उसी के अनुसार है जो परमेश्वर मनुष्य से कहता है।
शैतान के समस्त कार्यकलाप और कर्म मनुष्य के माध्यम से दिखाए जाते हैं। अब मनुष्य के समस्त कार्यकलाप और कर्म शैतान की अभिव्यक्ति हैं और इसलिए परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं। मनुष्य शैतान का मूर्त रूप है, और मनुष्य का स्वभाव परमेश्वर के स्वभाव का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। कुछ मनुष्य अच्छे चरित्र वाले होते हैं; परमेश्वर इनके माध्यम से कुछ कार्य कर सकता है और उनका कार्य पवित्र आत्मा द्वारा नियंत्रित होता है, फिर भी उनका स्वभाव परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है। परमेश्वर जो कार्य उनमें करता है, वह केवल जो पहले से ही भीतर विद्यमान होता है उसी पर कार्य करता और उसे ही विस्तारित करता है। वे चाहे सदियों पहले के भविष्यद्वक्ता हों या परमेश्वर द्वारा उपयोग में लिए गए मनुष्य, कोई भी उसका प्रत्यक्षतः प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है। सभी मनुष्य अपने परिवेश के दबाव में आकर ही परमेश्वर से प्रेम करने लगते हैं, और कोई भी आत्मनिष्ठ रूप में सहयोग करने का प्रयत्न नहीं करता है। सकारात्मक चीजें क्या हैं? वह सब जो सीधे परमेश्वर से आता है सकारात्मक है। हालाँकि, मनुष्य का स्वभाव शैतान द्वारा परिवर्तित कर दिया गया है और वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है। मात्र प्रेम, दुःख उठाने की इच्छा, धार्मिकता, आत्मसमर्पण, नम्रता और देह धारी परमेश्वर की गोपनीयता ही प्रत्यक्ष रूप से परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब वह आया, वह पापमय प्रकृति से रहित था और सीधे परमेश्वर से आया; वह शैतान द्वारा परिवर्तित नहीं किया गया है। यीशु केवल पापमय देह की समानता में है और पाप का प्रतिनिधित्व नहीं करता है; इसलिए, सलीब पर चढ़ने के माध्यम से कार्य के निष्पादन से पहले के समय तक के उसके कार्यकलाप, कर्म, और वचन, सभी परमेश्वर के प्रत्यक्ष रूप से प्रतिनिधिक हैं। यीशु का यह उदाहरण यह प्रमाणित करने हेतु पर्याप्त है कि पापमय प्रकृति वाला कोई भी व्यक्ति परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है, और मनुष्य का पाप शैतान का प्रतिनिधित्व करता है। कहने का अर्थ है, कि पाप परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं करता और परमेश्वर पापरहित है। यहाँ तक कि पवित्र आत्मा द्वारा मनुष्य में किया गया कार्य भी केवल पवित्र आत्मा द्वारा नियंत्रित किया गया माना जा सकता है, और मनुष्य द्वारा परमेश्वर की ओर से किया गया नहीं कहा जा सकता है जहाँ तक मनुष्य का संबंध है, न उसका पाप और न उसका स्वभाव परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है। आज और अतीत में पवित्र आत्मा द्वारा मनुष्य में किए गए कार्यों को देखने पर, अधिकांश पवित्र आत्मा द्वारा किया गया था। यही है जिसने मनुष्य को जीवन जीने की अनुमति दी। हालाँकि यह केवल एक पक्ष ही है, और पवित्र आत्मा द्वारा निपटाए और अनुशासित किए जाने के बाद बहुत ही कम लोग सत्य पर जीने में समर्थ हैं। करने का अर्थ है, कि मात्र पवित्र आत्मा का कार्य ही उपस्थित है और मनुष्य की ओर से सहयोग अनुपस्थित है। क्या तुम अब स्पष्ट रूप से देख सकते हो? तो फिर, पवित्र आत्मा के साथ कर्मठतापूर्वक कार्य करने और, ऐसा करने में, अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए, तुम्हें क्या करना चाहिए?

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