2018/09/01

पच्चीसवाँ कथन

परमेश्वर.मसीह, यीशु, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

                सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन—पच्चीसवाँ कथन

समय गुज़रा, और पलक झपकते ही आज का दिन आ गया है। मेरे आत्मा के मार्गदर्शन में, सभी लोग मेरे प्रकाश के बीच में रहते हैं, और कोई भी अतीत के बारे में अब और नहीं सोचता है या बीते कल पर अब और ध्यान नहीं देता है। कौन वर्तमान दिन में कभी नहीं रहा है? किसने राज्य में खुबसूरत दिनों और महिनों को नहीं बिताया है? कौन सूर्य के नीचे नहीं रहा है? यद्यपि, राज्य लोगों के बीच उतर चुका है, फिर भी किसी ने भी वास्तव में उसकी गर्मी को महसूस नहीं किया है; मनुष्य इसके सार को नहीं समझते हुए इसे केवल बाहरी तौर पर ही समझता है। जब मेरा राज्य आकार लेता है उस दौरान, कौन उसकी वजह से खुश नहीं होता है?
क्या पृथ्वी के राष्ट्र वास्तव में बच निकल सकते हैं? क्या बड़ा लाल अजगर अपनी धूर्तता के कारण वास्तव में बच निकलने में समर्थ है? मेरी प्राशसनिक आज्ञाएँ पूरे विश्व में घोषित की जाती हैं, और वे सभी लोगों के बीच मेरा अधिकार स्थापित करती हैं, और विश्व भर में प्रभावी होती है; तथापि, मनुष्य ने सच में इसे कभी नहीं जाना है। जब मेरी प्राशसनिक आज्ञाएँ विश्व के सामने प्रकट होती हैं तो ऐसा उस समय होता है जब मेरा कार्य भी पृथ्वी पर पूरा होने ही वाला होता है। जब मैं सभी मनुष्यों के बीच शासन करता हूँ और अपनी सामर्थ्य को काम में लाता हूँ और जब मैं एकमात्र परमेश्वर स्वयं के रूप में पहचान लिया जाता हूँ, तो मेरा राज्य पृथ्वी पर पूरी तरह से उतर जाता है। आज, सभी लोगों की एक नए पथ पर एक नई शुरुआत है। इन्होंने एक नए जीवन की शुरुआत की है, फिर भी किसी ने भी कभी भी पृथ्वी पर स्वर्ग के सदृश्य जीवन का वास्तव में अनुभव नहीं किया है। क्या तुम लोग सच में मेरे प्रकाश के मध्य रहते हो? क्या तुम लोग सच में मेरे वचनों के बीच जीते हो? कौन अपनी स्वयं की संभावनाओं पर विचार नहीं करता है? कौन अपने स्वयं के भाग्य द्वारा व्यथित नहीं है? कौन दुःखों के सागर के बीच संघर्ष नहीं करता है? कौन स्वयं को मुक्त करना नहीं चाहता है? क्या राज्य के आशीष पृथ्वी पर मनुष्य के कड़े परिश्रम के बदले में हैं? क्या मनुष्य जैसा चाहता है उसके अनुसार उसकी सभी इच्छाएँ पूरी की जा सकती हैं? मैंने एक बार मनुष्य के सामने राज्य का एक सुन्दर दृश्य प्रस्तुत किया था, तब भी उसने मात्र लालच भरी निगाहों से उसे घूरा था और वहाँ कोई नहीं था जो सच में उसमें प्रवेश करने की आकांक्षा रखता था? मैंने एक बार मनुष्य को पृथ्वी की सच्ची स्थिति से "अवगत" कराया था, किन्तु उसने सुनने से अधिक कुछ नहीं किया, और उसने हृदय से उन वचनों का सामना नहीं किया जो मेरे मुँह से निकले थे; मैंने एक बार मनुष्य को स्वर्ग की परिस्थितियों के बारे में बताया था, तब भी उसने मेरे वचनों को अद्भुत कहानियों के रूप में माना, और उसे वास्तव में स्वीकार नहीं किया जो मेरे मुँह के द्वारा वर्णन किया गया था। आज, राज्य के दृश्य मनुष्यों के बीच कौंधते हैं, किन्तु क्या कभी किसी ने उसकी खोज में "शिखरों और घाटियों को पार किया है?" मेरी प्रेरणा के बिना, मनुष्य अभी भी अपने स्वप्नों से भी नहीं जागा होता। क्या वह पृथ्वी पर अपने जीवन द्वारा वास्तव में बहुत वशीभूत है? क्या सच में उनके हृदय में कोई ऊँचे मानक नहीं हैं?
जिन्हें मैंने अपने लोगों के रूप में पहले से ही नियत कर दिया है वे अपने आपको मेरे प्रति समर्पित करने और वे मेरे साथ समरसता में रहने में समर्थ हैं। वे मेरी दृष्टी में बहुमूल्य हैं, और मेरे राज्य में मेरे लिए प्रेम के साथ चमकते हैं। आज के लोगों में, कौन ऐसी शर्तों को पूरा करता है? कौन मेरी अपेक्षाओं के अनुसार उस दर्जे तक पहुँचने में समर्थ है? क्या मेरी अपेक्षाएँ वास्तव में मनुष्य के लिए कठिनाईयाँ पैदा करती हैं? क्या मैं जानबूझकर उससे ग़लतियाँ करवाता हूँ? मैं सभी लोगों के प्रति उदार हूँ, और मैं उनसे वरीयता वाला व्यवहार करता हूँ। हालाँकि, यह सिर्फ चीन में मेरे लोगों के प्रति है। ऐसा नहीं है कि मैं तुम लोगों को कम आँकता हूँ, न ही मैं तुम लोगों की तरफदारी करता हूँ, बल्कि मैं तुम लोगों के प्रति व्यावहारिक और यथार्थवादी हूँ। लोग अपरिहार्य रूप से अपने जीवन में नाकामयाबी का सामना करते हैं, चाहे परिवार के सम्बन्ध में हो या विस्तृत संसार के सम्बन्ध में हो। फिर भी किसकी कठिनाई उसके स्वयं के हाथों के द्वारा व्यवस्थित की गई है? मनुष्य मुझे जानने में अक्षम है? उसके पास मेरे बाहरी रूप की कुछ समझ है, फिर भी वह मेरे सार से अनभिज्ञ है; वह उस भोजन के अवयवों को नहीं जानता है जिसे वह खाता है। कौन मेरे हृदय को सावधानी से महसूस कर सकता है? कौन मेरे सामने मेरी इच्छा को सचमुच समझने में समर्थ है? जब मैं पृथ्वी पर उतरा, उस समय यह अंधकार से आच्छादित है और मनुष्य "गहरी नींद में पड़ा हुआ है।" मैं सभी जगहों पर चला, और वह सब कुछ जो मैं देखता हूँ वह कटा फटा और जीर्ण-शीर्ण है और उस पर दृष्टी डालना असहनीय है। यह ऐसा है मानो कि मनुष्य केवल आनन्द लेना चाहता है, और उसकी "बाहरी संसार से चीज़ों" पर ध्यान देने की कोई इच्छा नहीं है। सभी लोगों के जाने बिना, मैं सारी पृथ्वी का सर्वेक्षण करता हूँ, फिर भी मैं ऐसी कोई भी जगह नहीं देखता हूँ जो जीवन से भरपूर हो। सीधे तौर पर, मैं अपने प्रकाश को चमकाता हूँ और गर्माहट देता हूँ और तीसरे स्वर्ग से पृथ्वी पर दृष्टि डालता हूँ। यद्यपि प्रकाश भूमि पर पड़ता है और गर्माहट उसके ऊपर फैल जाती है, फिर भी केवल प्रकाश और गर्माहट ही आनंन्दित करने वाले प्रतीत होते हैं; वे मनुष्य में कुछ भी उत्पन्न नहीं करते हैं, जो आराम में मौज मना रहा है। इसे देखते हुए, मैं तुरन्त ही मनुष्य के बीच उस "लाठी" को प्रदान करता हूँ जिसे मैंने तैयार किया है। जैसे ही लाठी पड़ती है, प्रकाश और गर्माहट धीरे-धीरे बिखर जाता है और पृथ्वी तुरंत उजाड़ और अंधेरी हो जाती है—और अंधकार के कारण, मनुष्य का आनंद लेते रहने का अवसर ज़ब्त हो जाता है। मनुष्य को मेरी लाठी के आने का थोड़ा अनुभव तो होता है, किन्तु वह प्रतिक्रिया नहीं करता है, और वह पृथ्वी पर आशीषों का आनन्द लेने में लगा रहता है। उसके बाद, मेरे मुँह से सभी मनुष्यों की ताड़ना की घोषणा होती है, और संपूर्ण विश्व के लोगों को उल्टा करके सलीब पर चढ़ा दिया जाता है। जब मेरी ताड़ना आती है, तो मनुष्य लुढ़कते हुए पहाड़ों और धरती के फटने के शोर से काँप जाता है। भौंचक्का हो कर जाग कर, वह हक्का-बक्का और भयभीत हो जाता है, और भाग जाना चाहता है, परन्तु बहुत देर हो चुकी है। जैसे ही मेरी ताड़ना पड़ती है, मेरा राज्य पृथ्वी के ऊपर उतर जाता है और सभी राष्ट्रों को टुकड़ों में चूर-चूर कर दिया जाता है, और वे बिना किसी नामोनिशान के विलुप्त हो जाते हैं और पीछे कुछ नहीं छूटता है।
हर दिन मैं विश्व के चेहरे को निहारता हूँ, और हर दिन मैं मनुष्य के मध्य अपना नया कार्य करता हूँ। फिर भी सभी लोग "निस्स्वार्थ भाव से काम कर रहे हैं," और कोई भी मेरे काम की गतिशीलता पर ध्यान नहीं देता है या उन चीज़ों की अवस्था के बारे में ध्यान नहीं देता है जो उनसे परे हैं। यह ऐसा है मानो कि लोग अपने बनाए हुए किसी नए स्वर्ग और किसी नई पृथ्वी में रहते हैं, और नहीं चाहते हैं कि कोई अन्य हस्तक्षेप करे। वे सभी अपने आपको आनन्दित करने के काम में लगे हैं, जब वे अपने "शारीरिक व्यायाम" करते हैं तो वे सभी अपने आपकी प्रशंसा करते हैं। क्या वास्तव में मनुष्य के हृदय में मेरा कोई स्थान नहीं है? क्या मैं वास्तव में मनुष्य के हृदय का शासक होने में अक्षम हूँ? क्या मनुष्य की आत्मा ने वास्तव में उसे छोड़ दिया है? किसने कभी मेरे मुँह के वचनों पर वास्तव में मनन किया है? किसने कभी मेरे हृदय की इच्छा को महसूस किया है? क्या मनुष्य के हृदय पर वास्तव में किसी और चीज़ के द्वारा कब्जा कर लिया गया है? कई बार ऐसा हुआ है कि मैं मनुष्य पर जोर से चीखा हूँ, फिर भी क्या कभी किसी ने संवेदना महसूस की है? क्या कभी कोई मानवजाति में रहा है? मनुष्य शरीर में रह सकता है, किन्तु वह मानवता के बिना है। क्या वह जानवरों के संसार में पैदा हुआ था? या क्या वह स्वर्ग में पैदा हुआ था, और दिव्यता से सम्पन्न है? मैं मनुष्य से अपेक्षाएँ करता हूँ, फिर भी यह ऐसा है मानो कि वह मेरे वचनों को नहीं समझता है, मानो कि मैं पहुँच से बाहर कोई दानव हूँ जो उसके लिए अन्य-देशीय है। कई बार मैं मनुष्य के द्वारा निराश किया गया हूँ, कई बार मैं उसके ख़राब प्रदर्शन से क्रोधित हुआ हूँ, और कई बार मैं उसकी कमज़ोरियों से व्यथित हुआ हूँ। मैं मनुष्य के हृदय में आध्यात्मिक भावना क्यों नहीं जगाऊँ? मैं मनुष्य के हृदय में प्रेम को प्रेरित क्यों नहीं करूँ? मनुष्य मेरे साथ अपनी आँख के तारे के समान व्यवहार करने का अनिच्छुक क्यों है? क्या मनुष्य का हृदय उसका स्वयं का नहीं है? क्या किसी और चीज़ ने उसकी आत्मा में निवास कर लिया है? मनुष्य बिना रूके विलाप क्यों करता रहता है? वह दयनीय क्यों है? जब वह दुःखी होता है, तब क्यों मेरे अस्तित्व की उपेक्षा करता है? क्या मैं उसे छुरा घोंपता हूँ? क्या मैंने जानबूझकर उसका परित्याग किया है?
मेरी नज़रों में, मनुष्य सभी चीज़ों का शासक है। मैंने उसे कम मात्रा में अधिकार नहीं दिया है, उसे पृथ्वी पर सभी चीज़ों—पहाड़ो के ऊपर की घास, जंगलों के बीच जानवरों, और जल की मछलियों—का प्रबन्ध करने की अनुमति दी है। फिर भी इसकी वजह से खुश होने के बजाए, मनुष्य चिंता से व्याकुल है। उसका पूरा जीवन एक मनस्ताप का, और वह यहाँ-वहाँ भागने का, और खालीपन में कुछ मौज मस्ती जोड़ने का है, और उसके पूरे जीवन में कोई नए अविष्कार और नई रचनाएँ नहीं हैं। कोई भी अपने आप को इस खोखले जीवन से छुड़ाने में समर्थ नहीं है, किसी ने कभी भी सार्थक जीवन की खोज नहीं की है, और किसी ने कभी भी एक वास्तविक जीवन का अनुभव नहीं किया है। यद्यपि आज सभी लोग मेरे चमकते हुए प्रकाश के नीचे जीवन बिताते हैं, फिर भी वे स्वर्ग के जीवन के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। यदि मैं मनुष्य के प्रति दयालु नहीं हूँ और मनुष्य को नहीं बचाता हूँ, तो सभी लोग व्यर्थ में आए हैं, पृथ्वी पर उनके जीवन का कोई अर्थ नहीं है, और वे व्यर्थ में चले जाएँगे, और उनके पास गर्व करने के लिए कुछ नहीं होगा। हर पंथ, समाज के हर वर्ग, हर राष्ट्र, और हर सम्प्रदाय के सभी लोग पृथ्वी पर खालीपन को जानते हैं, और वे सभी मुझे खोजते हैं और मेरी वापसी का इन्तज़ार करते हैं—फिर भी जब मैं आता हूँ तो कौन मुझे जानने में सक्षम है? मैंने सभी चीज़ों को बनाया, मैंने मानवजाति को बनाया, और आज मैं मनुष्य के बीच उतर गया हूँ। हालाँकि, मनुष्य पलटकर मुझ पर वार करता है, और मुझ से बदला लेता है। क्या जो कार्य मैं मनुष्य पर करता हूँ वह उसके किसी लाभ का नहीं है? क्या मैं वास्तव में मनुष्य को संतुष्ट करने में अक्षम हूँ? मनुष्य मुझे अस्वीकार क्यों करता है? मनुष्य मेरे प्रति इतना निरूत्साहित और उदासीन क्यों है? पृथ्वी लाशों से क्यों भरी हुई है? क्या वास्तव में संसार की स्थिति ऐसी ही है जिसे मैंने मनुष्य के लिए बनाया था? ऐसा क्यों हैं कि मैंने मनुष्य को अतुलनीय समृद्धि दी है, फिर भी वह बदले में मुझे दो खाली हाथ प्रदान करता है? मनुष्य मुझसे सचमुच में प्रेम क्यों नहीं करता है? वह कभी भी मेरे सामने क्यों नहीं आता है? क्या मेरे सारे वचन वास्तव में व्यर्थ हैं? क्या मेरे वचन पानी में से गर्मी की तरह ग़ायब हो गए हैं? क्यों मनुष्य मेरे साथ सहयोग करने का अनिच्छुक है? क्या मेरे आगमन का दिन मनुष्य के लिए वास्तव में मृत्यु का दिन है? क्या मैं वास्तव में उस समय मनुष्य को नष्ट कर सकता हूँ जब मेरे राज्य का गठन होता है? मेरी प्रबन्धन योजना के दौरान, क्यों कभी भी किसी ने मेरे इरादों को नहीं समझा है? क्यों मनुष्य मेरे मुँह के वचनों को सँजोने के बजाए, उनसे घृणा करता है और उन्हें अस्वीकार करता है? मैं किसी की भी निंदा नहीं करता हूँ, परन्तु मात्र सभी लोगों को शांत करवाता हूँ और उनसे आत्म-चिंतन का कार्य करवाता हूँ।
27 मार्च 1992
Source From:चमकती पूर्वी बिजली,अंतिम दिनों के मसीह के कथन,

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