VIII. परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के काम के बीच अंतर से सम्बंधित सच्चाई पर हर किसी को स्पष्ट रूप से अवश्य ही सहभागिता करनी चाहिए
4. जो भी परमेश्वर में विश्वास करता है, उन्हें झूठे चरवाहों और मसीह-शत्रुओं को पहचानने में सक्षम होना चाहिए ताकि वह धर्म को त्याग कर परमेश्वर की ओर लौट सके।
संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"परमेश्वर यहोवा यों कहता है: हाय इस्राएल के चरवाहों पर जो अपने अपने पेट भरते हैं! क्या चरवाहों को भेड़-बकरियों का पेट न भरना चाहिए? तुम लोग चर्बी खाते, ऊन पहिनते और मोटे मोटे पशुओं को काटते हो; परन्तु भेड़-बकरियों को तुम नहीं चराते। तुम ने बीमारों को बलवान न किया, न रोगियों को चंगा किया, न घायलों के घावों को बाँधा, न निकाली हुई को लौटा लाए, न खोई हुई को खोजा, परन्तु तुम ने बल और जबरदस्ती से अधिकार चलाया है" (यहेजकेल 34:2-4)।
"झूठे भविष्यद्वक्ताओं से सावधान रहो, जो भेड़ों के भेस में तुम्हारे पास आते हैं, परन्तु अन्तर में वे फाड़नेवाले भेड़िए हैं" (मत्ती 7:15)।
"वे अंधे मार्गदर्शक हैं और अंधा यदि अंधे को मार्ग दिखाए, तो दोनों ही गड़हे में गिर पड़ेंगे" (मत्ती 15:14)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
एक अयोग्य कार्यकर्ता का कार्य अधूरा होता है; उसका कार्य मूर्खतापूर्ण होता है। वह केवल लोगों को नियमों के अंतर्गत ला सकता है; वह लोगों से जो मांग करता है वह एक व्यक्ति से लेकर दूसरे व्यक्ति तक भिन्न नहीं होता है; वह लोगों की वास्तविक आवश्यकताओं के अनुसार कार्य नहीं कर सकता है। इस प्रकार के कार्य में, बहुत सारे नियम एवं बहुत सारे सिद्धान्त होते हैं, और ये लोगों को वास्तविकता में या जीवन में बढ़ोत्तरी के सामान्य अभ्यास में नहीं ला सकते हैं। यह केवल लोगों को कुछ बेकार नियमों में चुपचाप बने रहने के योग्य बना सकता है। इस प्रकार का मार्गदर्शन लोगों को केवल भटका सकता है। वह आपकी अगुवाई करता है ताकि आप उसके समान बन जाएं; जो उसके पास है और जो वह है वह आपको उसमें ला सकता है। अनुयायियों के लिए यह परखना कि अगुवे योग्य हैं या नहीं, मुख्य बात है कि वे उस मार्ग को जिसकी वे अगुवाई करते हैं और उनके कार्य के परिणामों को देखें, और इस बात को देखें कि अनुयायी सत्य के अनुसार सिद्धान्तों को प्राप्त करते हैं या नहीं, और वे उनके रूपान्तरण के लिए उपयुक्त अभ्यास के मार्गों को प्राप्त करते हैं या नहीं। आपको विभिन्न प्रकार के लोगों के विभिन्न कार्यों के मध्य अन्तर करना चाहिए; आपको एक मूर्ख अनुयायी नहीं होना चाहिए। यह आपके प्रवेश के मामले में बुरा प्रभाव डाल सकता है। यदि आप यह अन्तर करने में असमर्थ हैं कि किस व्यक्ति के नेतृत्व के पास एक मार्ग है और किस व्यक्ति के पास नहीं है, आपको धोखा दिया जाएगा। इन सबका आपके स्वयं के जीवन से प्रत्यक्ष सम्बन्ध है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का काम" से
वह कार्य जो मनुष्य के दिमाग में होता है उसे बहुत ही आसानी से मनुष्य के द्वारा प्राप्त किया जाता है। उदाहरण के लिए, इस धार्मिक संसार में पास्टर एवं अगुवे अपने कार्य को करने के लिए अपने वरदानों एवं पदों पर भरोसा रखते हैं। ऐसे लोग जो लोग लम्बे समय से उनका अनुसरण करते हैं वे उनके वरदानों के द्वारा संक्रमित हो जाएंगे और जो वे हैं उनमें से कुछ के द्वारा उन्हें प्रभावित किया जाएगा। वे लोगों के वरदानों, योग्यताओं एवं ज्ञान पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, और वे कुछ अलौकिक कार्यों और अनेक गम्भीर अवास्तविक सिद्धान्तों पर ध्यान देते हैं (हाँ वास्तव में, इन गम्भीर सिद्धान्तों को हासिल नहीं किया जा सकता है)। वे लोगों के स्वभाव के परिवर्तनों पर ध्यान केन्द्रित नहीं करते हैं, किन्तु इसके बजाए वे लोगों के प्रचार एवं कार्य करने की योग्यताओं को प्रशिक्षित करने, और लोगों के ज्ञान एवं समृद्ध धार्मिक सिद्धान्तों को बेहतर बनाने के ऊपर ध्यान केन्द्रित करते हैं। वे इस पर ध्यान केन्द्रित नहीं करते हैं कि लोगों के स्वभाव में कितना परिवर्तन हुआ है या इस पर कि लोग सत्य को कितना समझते हैं। वे लोगों के मूल-तत्व के साथ अपने आपको नहीं जोड़ते हैं, और वे लोगों की सामान्य एवं असमान्य दशाओं को जानने की कोशिश तो बिलकुल भी नहीं करते हैं। वे लोगों की धारणाओं का विरोध नहीं करते हैं या उनकी धारणाओं को प्रगट नहीं करते हैं, और वे अपनी कमियों या भ्रष्टता में सुधार तो बिलकुल भी नहीं करते हैं। अधिकांश लोग जो उनका अनुसरण करते हैं वे अपने स्वाभाविक वरदानों के द्वारा सेवा करते हैं, और जो कुछ वे अभिव्यक्त करते हैं वह ज्ञान एवं अस्पष्ट धार्मिक सत्य है, जिनका वास्तविकता के साथ कोई नाता नहीं है और वे लोगों को जीवन प्रदान में पूरी तरह से असमर्थ हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का काम" से
मेरी पीठ पीछे बहुत से लोग हैसियत के आशीष का लोभ करते हैं, वे ठूँस-ठूँस कर खाना खाते हैं, वे नींद से प्यार करते हैं तथा देह पर बहुत ध्यान देते हैं, हमेशा भयभीत रहते हैं कि देह से बाहर कोई मार्ग नहीं है। वे कलीसिया में अपना सामान्य प्रकार्य नहीं करते हैं, और मुफ़्त में खाते हैं, या अन्यथा मेरे वचनों से अपने भाईयों एवं बहनों की भर्त्सना करते हैं, वे ऊँचे स्थान में खड़े होते हैं तथा दूसरों के ऊपर आधिपत्य जताते हैं। ये लोग निरन्तर कहते रहते हैं कि वे परमेश्वर की इच्छा को पूरा कर रहे हैं, वे हमेशा कहते हैं कि वे परमेश्वर के अंतरंग हैं—क्या यह बेतुका नहीं है? यदि तुम्हारे पास सही प्रेरणाएँ हैं, किन्तु तुम परमेश्वर की इच्छा की सेवा करने में असमर्थ हो, तो तुम मूर्ख हो; किन्तु यदि तुम्हारी प्रेरणाएँ सही नहीं हैं, और तुम तब भी कहते हो कि तुम परमेश्वर की सेवा करते हो, तो तुम एक ऐसे व्यक्ति हो जो परमेश्वर का विरोध करता है, और तुम्हें परमेश्वर के द्वारा दण्डित किया जाना चाहिए! ऐसे लोगों के लिए मेरे पास कोई सहानुभूति नहीं है! परमेश्वर के घर में वे मुफ़्त में भोजन करते हैं, और हमेशा देह के आराम का लोभ करते हैं, और परमेश्वर की रूचियों पर कोई विचार नहीं करते हैं; वे हमेशा उसकी खोज करते हैं जो उनके लिए अच्छा है, वे परमेश्वर की इच्छा पर कोई ध्यान नहीं देते हैं, वे जो कुछ भी करते हैं उस पर परमेश्वर के आत्मा के द्वारा कोई विचार नहीं किया जाता है, वे हमेशा अपने भाईयों एवं बहनों के विरूद्ध चालाकी और साजिश करते रहते हैं, और दो-मुँहे हो कर, वे दाख की बाड़ी में लोमड़ी के समान, हमेशा अंगूरों को चुराते हैं और दाख की बाड़ी को कुचलते हैं। क्या ऐसे लोग परमेश्वर के अंतरंग हो सकते हैं? क्या तुम परमेश्वर को आशीषों को प्राप्त करने के लायक़ हो? तुम अपने जीवन एवं कलीसिया के लिए कोई उत्तरदायित्व नहीं लेते हो, क्या तुम परमेश्वर के आदेश को लेने के लायक़ हो? कौन तुम जैसे व्यक्ति पर भरोसा करने की हिम्मत करेगा? जब तुम इस प्रकार से सेवा करते हो, तो क्या परमेश्वर तुम्हें बड़ा काम देने की हिम्मत कर सकता है? क्या तुम चीजों में विलंब नहीं कर रहे हो?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर की इच्छा की समरसता में सेवा कैसे करें" से
तुम परमेश्वर की सेवा अपने प्राकृतिक स्वभाव से, और अपनी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के अनुसार करते हो; इसके अलावा, तुम सोचते रहते हो कि जो कुछ भी तुम करना चाहते हो, उसे परमेश्वर पसंद करता है, और जो कुछ भी तुम नहीं करना चाहते हो उससे परमेश्वर घृणा करता है, और अपने कार्य में तुम पूर्णतः अपनी प्राथमिकताओं द्वारा मार्गदर्शित होते हो। क्या इसे परमेश्वर की सेवा करना कह सकते हैं? अंततः तुम्हारे जीवन स्वभाव में रत्ती भर भी सुधार नहीं आएगा; तुम और भी अधिक ज़िद्दी बन जाओगे क्योंकि तुम परमेश्वर की सेवा कर रहे हो, और इससे तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव गहराई तक समा जाएगा। इस तरह, तुम मन में परमेश्वर की सेवा के बारे में ऐसे सिद्धान्त विकसित कर लोगे जो मुख्यतः तुम्हारे स्वयं के चरित्र पर आधारित होते हैं, और तुम्हारे सेवा करने से तुम्हारे स्वयं के स्वभाव के अनुसार अनुभव प्राप्त होता है। यह मानवीय अनुभव से सबक है। यह मनुष्य के जीवन का दर्शनशास्त्र है। इस तरह के लोग फरीसियों और धार्मिक अधिकारियों से संबंधित होते हैं। यदि वे कभी भी जागते और पश्चताप नहीं करते हैं, तो अतंतः वे झूठे मसीह बन जाएँगे जो अंत के दिनों में दिखाई देंगे, और मनुष्यों को धोखा देने वाले होंगे। झूठे मसीह और धोखेबाज़ जिनके बारे में कहा गया था, इसी प्रकार के लोगों में से ही उठ खड़े होंगे। जो परमेश्वर की सेवा करते हैं यदि वे अपने स्वयं के स्वभाव का अनुसरण करते हैं और अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करते हैं, तब वे किसी भी समय बहिष्कृत कर दिए जाने के ख़तरे हैं। जो दूसरों के हृदयों को जीतने, उन्हें व्याख्यान देने, उन पर हावी होने, और ऊँचे स्थान पर खड़े होने के लिए परमेश्वर की सेवा के कई वर्षों के अपने अनुभव का प्रयोग करते हैं—और जो कभी पछतावा नहीं करते हैं, कभी भी अपने पापों को स्वीकार नहीं करते हैं, पद के लाभों को कभी नहीं त्यागते हैं—वे लोग परमेश्वर के सामने ढह जाएँगे। ये अपनी वरिष्ठता का घमंड दिखाते हुए और अपनी योग्यताओं पर इतराते हुए, पौलुस की ही तरह के लोग हैं। परमेश्वर इस तरह के लोगों को पूर्णता पर नहीं लाएगा। इस प्रकार की सेवा परमेश्वर के कार्य में विघ्न डालती है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "सेवा के धार्मिक तरीके पर अवश्य प्रतिबंध लगना चाहिए" से
जब परमेश्वर ने देहधारण किया और मनुष्यों के बीच काम करने आया, तो सभी ने उन्हें देखा और उसके वचनों को सुना, और सभी ने देह में परमेश्वर के कामों को देखा। उस समय, मनुष्य की जितनी भी अवधारणाएँ थी वे सब मानो साबुन के झाग में घुल कर बह गईं। वे जो परमेश्वर को देहधारण करते हुए देखते हैं, और अपने-अपने हृदयों में आज्ञाकारी हैं, उन सभी की निंदा नहीं की जाएगी, जबकि वे जो जानबूझकर परमेश्वर के विरुद्ध खड़े होते हैं, परमेश्वर का विरोध करने वाले माने जाएँगे। ऐसे लोग ईसा-विरोधी हैं और शत्रु हैं जो जानबूझकर परमेश्वर के विरोध में खड़े होते हैं। …जो जानबूझकर देहधारी परमेश्वर के विरोध में खड़े होते हैं, वे उसके द्वारा की गई अवज्ञा के कारण दण्ड पाएँगे। उनका जानबूझकर परमेश्वर का विरोध करना, परमेश्वर की उनकी अवधारणाओं से उत्पन्न होता है, जिसका परिणाम परमेश्वर के कार्य में उनका व्यवधान है। ऐसे व्यक्ति जानते-बूझते हुए परमेश्वर के कार्य का प्रतिरोध करते हैं और उसे नष्ट करते हैं। उनकी न केवल परमेश्वर के बारे में अवधारणाएँ हैं, बल्कि वे उन कामों को करते हैं जो परमेश्वर के कार्य में व्यवधान डालते हैं, और यही कारण है कि ऐसे मनुष्यों के इस तरीके की निंदा की जाएगी।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "वे सब जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं वे ही परमेश्वर का विरोध करते हैं" से
सबसे अधिक विद्रोही मनुष्य वह है जो जानबूझकर परमेश्वर की अवहेलना करता है और उसका विरोध करता है। वह परमेश्वर का शत्रु है और मसीह विरोधी है। ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के नए कार्य के प्रति निरंतर शत्रुतापूर्ण रवैया रखता है, ऐसे व्यक्ति ने कभी भी समर्पण करने का जरा सा भी इरादा नहीं दिखाया है, और कभी भी खुशी से समर्पण नहीं दिखाया है और अपने आपको दीन नहीं बनाया है। वह दूसरों के सामने अपने आपको ऊँचा उठाता है और कभी भी किसी के प्रति भी समर्पण नहीं दिख्ता है। परमेश्वर के सामने, वह स्वयं को वचन का उपदेश देने में सबसे ज़्यादा निपुण समझता है और दूसरों पर कार्य करने में अपने आपको सबसे अधिक कुशल समझता है। वह उस अनमोल ख़जाने को कभी नहीं छोड़ता है जो पहले से ही उसके अधिकार में है, बल्कि आराधना करने, दूसरों को उसके बारे में उपदेश देने के लिए, उन्हें अपने परिवार की विरासत मानता है, और उन मूर्खों को उपदेश देने के लिए उनका उपयोग करता है जो उसकी पूजा करते हैं। कलीसिया में वास्तव में कुछ संख्या में ऐसे लोग हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि वे "अदम्य नायक" हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी परमेश्वर के घर में डेरा डाले हुए हैं। वे वचन (सिद्धांत) का उपदेश देना अपना सर्वोत्तम कर्तव्य समझते हैं। साल दर साल और पीढ़ी दर पीढ़ी वे अपने "पवित्र और अनुलंघनीय" कर्तव्य को जोशपूर्वक लागू करने की कोशिश करते रहते हैं। कोई उन्हें छूने का साहस नहीं करता है और एक भी व्यक्ति खुलकर उनकी निन्दा करने का साहस नहीं करता है। वे परमेश्वर के घर में "राजा" बन गए हैं, और युगों-युगों से दूसरों पर क्रूरता पूर्वक शासन करते हुए उच्छृंखल चल रहे हैं। दुष्टात्माओं का यह झुंड संगठित होकर काम करता है और मेरे कार्य का विध्वंस करने की कोशिश करता है; मैं इन जीवित दुष्ट आत्माओं को अपनी आँखों के सामने अस्तित्व में रहने की अनुमति कैसे दे सकता हूँ?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के आज्ञाकारी हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाएँगे" से
तुम लोगों का परमेश्वर के प्रति विरोध और पवित्र आत्मा के कार्य में अवरोध तुम लोगों की धारणा और तुम लोगों के अंतर्निहित अहंकार के कारण है। यह इसलिए नहीं कि परमेश्वर का कार्य गलत है, बल्कि क्योंकि तुम लोग प्राकृतिक रूप से बहुत ही ज्यादा अवज्ञाकारी हो। परमेश्वर में अपना विश्वास पाने के बाद, यहाँ तक कि कुछ लोग निश्चितता से यह भी नहीं कह सकते हैं कि मनुष्य कहाँ से आया, फिर भी वे पवित्र आत्मा के कार्यों के सही और गलत होने के बारे में बताते हुए सार्वजनिक भाषण देने का साहस करते हैं। और वे यहाँ तक कि प्रेरितों को भी व्याख्यान देते हैं जिनके पास पवित्र आत्मा का नया कार्य है, उन पर टिप्पणी करते हैं और बेसमय बोलते रहते हैं; उनकी मानवता बहुत ही कम होती है, और उनमें बिल्कुल भी समझ नहीं होती है। क्या वह दिन नहीं आएगा जब इस प्रकार के लोग पवित्र आत्मा के कार्य के द्वारा अस्वीकृत कर दिए जाएँगे, और नरक की आग द्वारा जलाए जाएँगे? वे परमेश्वर के कार्यों को नहीं जानते हैं, बल्कि इसके बजाय उसके कार्य की आलोचना करते हैं और परमेश्वर को यह निर्देश देने की कोशिश करते हैं कि कार्य किस प्रकार किया जाए। इस प्रकार के अनुचित लोग परमेश्वर को कैसे जान सकते हैं? मनुष्य परमेश्वर को खोजने और अनुभव करने की प्रक्रिया के दौरान परमेश्वर को जान जाता है; यह सनक में उसकी आलोचना करने से नहीं है कि वह पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता के माध्यम से परमेश्वर को जान जाता है। जितना अधिक परिशुद्ध परमेश्वर के बारे में लोगों का ज्ञान होता है, उतना ही कम वे उसका विरोध करते हैं। इसके विपरीत, लोग जितना कम परमेश्वर के बारे में जानते हैं, उतना ही ज्यादा परमात्मा का विरोध करने की उनकी संभावना होती है। तुम्हारी धारणाएँ, तुम्हारी पुरानी प्रकृति, और तुम्हारी मानवता, चरित्र और नैतिक दृष्टिकोण वह "पूँजी" है जिससे तुम परमेश्वर का प्रतिरोध करते हो, और तुम जितना अधिक भ्रष्ट, तुच्छ और निम्न होगे, उतना ही अधिक तुम परमेश्वर के शत्रु बन जाते हो। जो लोग गम्भीर धारणाएँ रखते हैं और आत्मतुष्ट स्वभाव के हैं वे और भी अधिक देहधारी परमेश्वर के साथ शत्रुता में हैं और इस प्रकार के लोग मसीह-विरोधी हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है" से
आप देखिए कि कुछ लोग कुछ बातें करते हैं जो मूर्ख और अज्ञानी हैं, और उन्हें क्षमा कर दिया जाता है। उनकी अज्ञानता के लिए उन्हें क्षमा कर दिया जाता है और जो उनकी ज़िम्मेदारियां थीं उन्हें नहीं देखा जाता है। कुछ अन्य लोगों के साथ ऐसा ही क्यों नहीं होता है? क्योंकि उन्होंने ऐसी बातें कहीं जो बहुत ही गम्भीर थीं: "आप परमेश्वर हैं, किन्तु मैं तब भी आपकी आज्ञा को नहीं मानूंगा।" ये लोग मसीह विरोधी हैं; वे परमेश्वर की अवहेलना करते हैं और सत्य को स्वीकार नहीं करते हैं।
"मसीह की बातचीतों के अभिलेख" से
ऐसा कोई कलीसिया नहीं है जहां लोग कलीसिया को परेशान न करते हों, जहां लोग परमेश्वर के कार्य में बाधा न उपस्थित करते हों। ऐसे लोग परमेश्वर के परिवार में छ्द्म वेष में शैतान का ही रूप हैं। ऐसे लोग छ्द्म वेष धारण करने में निपुण होते हैं, मेरे समक्ष विनीत भाव से आकर, नमन करते हुए, नत-मस्तक होते हैं, खुजली वाले कुत्ते की तरह व्यवहार करते हैं, अपने निहित मंसूबों को साधने के लिये अपना "सर्वस्व" न्योछावर करने को तत्पर रहते हैं, लेकिन भाइयों और बहनों के समक्ष अपना घिनौना रूप प्रकट कर देते हैं। ऐसे लोग जब किसी को सत्य का अनुपालन करते देखते हैं तो उस पर आक्रमण करते हैं, उसे अलग-थलग कर देते हैं, और जब किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो उनसे भी अधिक भयंकर अवस्था में हो तो फिर उसकी चाटुकारिता करने लगते हैं, प्रेम प्रदर्शित करने लगते हैं, और कलीसियामें किसी तानाशाह की तरह पेश आने लगते हैं। अधिकतर कलीसियाओं में इसी प्रकार के "स्थानीय दुर्जन नाग", और "पालतू कुत्तों" की पैठ है। ऐसे लोग मिलकर आस-पास मुखबिरी करते हैं, आंखों से और हाव-भाव से एक-दूसरे को इशारे करते हैं, और इनमें से सत्य का पालन कोई भी नहीं करता। जिसमें सबसे अधिक विष होता है वह इन "राक्षसों का मुखिया" होता है, और जिसकी इनमें सबसे अधिक प्रतिष्ठा होती है, वह इनका नेतृत्व करता है और इनका परचम बुलंद करके रखता है। ऐसे लोग कलीसियामें उपद्रव करते हैं, नकारात्मकता फैलाते हुए, मौत का तांडव करते हैं, मनमर्जी करते हैं, जो चाहे बकते हैं, और किसी की हिम्मत नहीं होती कि इन्हें कुछ कहे। इनका आचरण और स्वभाव पूरी तरह से शैतानी होता है। जैसे ही ये लोग परेशानियां खड़ी करने लगते हैं, कलीसिया में जैसे मौत की घुटन-सी छाने लगती है। जो लोग सत्य के मार्ग पर चल रहे थे, वे परित्यक्त से हो जाते हैं और अपनी सामर्थ्य का उपयोग नहीं कर पाते, और जो कलीसिया में परेशानियां खड़ी करते हैं और जिनसे मौत पसरती है, वे कलीसिया में बेख़ौफ़ घूमते हैं। और अधिकतर लोग उनका अनुसरण भी करते हैं। ऐसे चर्चों पर शैतान का कब्ज़ा है और राक्षस ही उनका सम्राट है। यदि कलीसिया के लोग ऐसे मुखिया राक्षसों के खिलाफ़ खड़े होकर उन्हें बहिष्कृत नहीं करेंगे, तो वे आकर देर-सवेर उन्हें भी बर्बाद कर देंगे। ऐसे कलीसियाओं के ख़िलाफ़ कड़े कदम उठाये जाने चाहिए। यदि ऐसे लोग जो थोड़ा-बहुत सत्य का पालन करने के योग्य हैं, वे खोज में नहीं जुटते हैं, तो फिर इस तरह के कलीसिया पर पाबंदी लगा दी जायेगी। यदि कलीसिया में ऐसे लोग नहीं हैं जो सत्य का पालन करने के इच्छुक हों, जो परमेश्वर की गवाही दे सकते हों, तो कलीसिया को पूरी तरह से बहिष्कृत कर दिया जाना चाहिये और अन्य कलीसियाओं के साथ उनके सम्बंध विच्छेद कर दिये जाने चाहिये। इसे मृत्यु को दफ़्न करना और शैतान को बहिष्कृत करना कहते हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "जो सत्य का पालन नहीं करते, उनके लिये चेतावनी" से
यदि किसी कलीसिया में दुर्जन नागों और उनका अनुसरण करने वाले कीड़े-मकौड़ों का बाहुल्य है और उनमें किसी तरह का कोई विवेक नहीं रह गया है, और यदि सत्य देख लेने के बाद भी ऐसे कलीसिया इन सांपों की जकड़न और कपट से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं, ऐसे मूर्खों का अंत में सफाया कर दिया जायेगा। हालांकि ऐसे कीड़े-मकौड़ों ने भले ही कोई खौफ़नाक हरकत न की हो, लेकिन ये ज़्यादा धूर्त, शातिर और बहानेबाज़ होते हैं। इसलिये ऐसे तमाम लोगों का सफाया हो जायेगा। इनमें से बचेगा कोई नहीं! जो शैतान के साथ हैं, वे शैतान के पास ही वापिस चले जायेंगे और जो परमेश्वर के साथ हैं, वे सत्य के अन्वेषण में लग जायेंगे; यह उनकी प्रकृति के अनुसार तय होगा। शैतान का अनुसरण करने वालों को नष्ट हो जाने दो! ऐसे लोगों के प्रति कोई दया-भाव नहीं दिखाया जायेगा। और जो सत्य के खोजी हैं, उनके लिये पूर्ण व्यवस्था की जाये और उन्हें परमेश्वर के वचनों का भरपूर आनंद प्राप्त करने की अनुमति दी जाये। परमेश्वर न्यायी है और वो किसी के साथ भी अन्याय नहीं करता। यदि तुम दुर्जन हो तो तुम सत्य का अभ्यास नहीं कर पाओगे। और यदि तुम सत्य की खोज करते हो तो यह तय है कि तुम शैतान के चंगुल में नहीं फंस सकते – इसमें किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "जो सत्य का पालन नहीं करते, उनके लिये चेतावनी" से
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