2018/12/19

6. क्या धार्मिक दुनिया में सच्चाई और परमेश्वर की सत्ता होती है, या मसीह-शत्रु और शैतान की सत्ता है?

परमेश्वर की गवाही देते बीस सत्य, परमेश्वर को जानना, परमेश्वर का स्वभाव

XV फरीसियों और परमेश्वर का विरोध करती धार्मिक दुनिया के सार को किस तरह पहचानें इस पर हर किसी को स्पष्ट रूप से सहभागिता करनी चाहिए

6. क्या धार्मिक दुनिया में सच्चाई और परमेश्वर की सत्ता होती है, या मसीह-शत्रु और शैतान की सत्ता है?
संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो" (मत्‍ती 23:13)।
"यीशु ने परमेश्‍वर के मन्दिर में जाकर उन सब को, जो मन्दिर में लेन-देन कर रहे थे, निकाल दिया, और सर्राफों के पीढ़े और कबूतर बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं; और उनसे कहा, 'लिखा है, "मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा"; परन्तु तुम उसे डाकुओं की खोह बनाते हो'" (मत्‍ती 21:12-13)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
कुछ समय तक कार्य करने के बाद, जिन लोगों को परमेश्वर ने पृथ्वी पर उपयोग किया था, उन्होंने परमेश्वर का स्थान ले लिया और कहा, "मैं ब्रह्माण्ड से बढ़ कर होना चाहता हूँ! मैं तीसरे स्वर्ग में खड़ा होना चाहता हूँ!" हम संप्रभुता की सामर्थ्य का शासन चाहते हैं! कुछ दिनों तक कार्य करने के बाद वे घमंडी बन जाया करते; वे पृथ्वी पर संप्रभुता की सामर्थ्य चाहते थे, वे एक अन्य राष्ट्र स्थापित करना चाहते थे, वे सब चीज़ों को अपने पाँवों के नीचे चाहते थे, और तीसरे स्वर्ग में खड़े होना चाहते थे। क्या तुम नहीं जानते हो कि तुम परमेश्वर के द्वारा उपयोग किए गए एक मनुष्य मात्र हो? तुम तीसरे स्वर्ग तक कैसे आरोहण कर सकते हो? ... वे धार्मिक पादरी जो बीमारों को चंगा करते हैं और दुष्टात्माओं को निकालते हैं, मंच से दूसरों को भाषण देते हैं, लंबे और आडंबरपूर्ण भाषण देते हैं, और अवास्तविक मामलों की चर्चा करते हैं, भीतर तक अहंकारी हैं! वे प्रधान स्वर्गदूत के वंशज हैं!
"वचन देह में प्रकट होता है" से "तुम्हें पता होना चाहिए कि समस्त मानवजाति आज के दिन तक कैसे विकसित हुई" से
ऐसे लोग जो परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं वे परमेश्वर की उपस्थिति से वंचित रहते हैं, और, इसके अतिरिक्त, वे परमेश्वर की आशीषों एवं सुरक्षा से रहित होते हैं। उनके अधिकांश वचन एवं कार्य पवित्र आत्मा की पुरानी अपेक्षाओं को थामे रहते हैं; वे सिद्धान्त हैं, सत्य नहीं। ऐसे सिद्धान्त एवं रीति विधियां यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि वह एकमात्र चीज़ जो उन्हें एक साथ लेकर आती है वह धर्म है; वे चुने हुए लोग, या परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य नहीं हैं। उनके बीच के सभी लोगों की सभा को मात्र धर्म का महासम्मलेन कहा जा सकता है, और उन्हें कलीसिया नहीं कहा जा सकता है। ये एक अपरिवर्तनीय तथ्य है। उनके पास पवित्र आत्मा का नया कार्य नहीं है; जो कुछ वे करते हैं वह धर्म का सूचक प्रतीत होता है, जैसा जीवन वे जीते हैं वह धर्म से भरा हुआ प्रतीत होता है; उनमें पवित्र आत्मा की उपस्थिति एवं कार्य नहीं होते हैं, और वे पवित्र आत्मा के अनुशासन या प्रबुद्धता को प्राप्त करने के लायक तो बिलकुल भी नहीं हैं। ऐसे समस्त लोग निर्जीव लाशों एवं कीड़ों के समान हैं जो आध्यात्मिकता से रहित हैं। उनके पास मनुष्य के विद्रोहीपन एवं विरोध का कोई ज्ञान नहीं है, उनके पास मनुष्य के समस्त बुरे कार्यों का कोई ज्ञान नहीं है, और वे परमेश्वर के समस्त कार्य एवं परमेश्वर की वर्तमान इच्छा के विषय में बिलकुल भी नहीं जानते हैं। वे सभी अज्ञानी और नीच लोग हैं, वे कूडा करकट हैं जो विश्वासी कहलाने के योग्य नहीं हैं। वे ऐसा कुछ भी नहीं करते हैं जिसका परमेश्वर के प्रबंधन कार्य के साथ कोई सम्बन्ध हो, और वे परमेश्वर के कार्य को तो बिलकुल भी बिगड़ नहीं सकते हैं। उनके वचन एवं कार्य इतने घृणास्पद, इतने दयनीय, और साधारण तौर पर जिक्र करने के लायक भी नहीं होते हैं। ऐसे लोग जो पवित्र आत्मा की मुख्य धारा में नहीं हैं उनके द्वारा किए गए किसी भी कार्य का पवित्र आत्मा के नए कार्य के साथ कोई लेनादेना नहीं होता है। इस कारण, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वे क्या करते हैं, क्योंकि वे पवित्र आत्मा के अनुशासन से रहित होते हैं, और, इसके अतिरिक्त, वे पवित्र आत्मा की अद्भुत प्रबुद्धता से रहित होते हैं। क्योंकि वे सभी ऐसे लोग हैं जिनमें सत्य के लिए कोई प्रेम नहीं है, और पवित्र आत्मा के द्वारा उनसे घृणा और उनका तिरस्कार किया जाता है। उन्हें कुकर्मी कहा जाता हैं क्योंकि वे शरीर के अनुसार चलते हैं, और वे परमेश्वर की नाम पट्टी के अंतर्गत जो उन्हें अच्छा लगता है वही करते हैं। जब परमेश्वर कार्य करता है, तो वे जानबूझकर उसके विरोध में हो जाते हैं, और उसकी विपरीत दिशा में दौड़ते हैं। परमेश्वर के साथ सहयोग करने में मनुष्य की असफलता, साथ ही साथ ऐसे लोगों के द्वारा जानबूझकर परमेश्वर से दूर जाना अपने आपमें सबसे बड़ा विद्रोह है। तो क्या वे अपने उचित दण्ड को प्राप्त नहीं करेंगे? इन लोगों के बुरे कामों का जिक्र होने पर, कुछ लोग उन्हें श्राप देने से स्वयं को रोक नहीं सकते हैं, जबकि परमेश्वर उन्हें अनदेखा करता है। मनुष्य के लिए, ऐसा प्रतीत होता है कि उनके कार्य परमेश्वर के नाम से सम्बन्धित हैं, किन्तु वास्तव में, परमेश्वर के लिए, उसके नाम या उसके प्रति गवाही से उनका कोई रिश्ता नहीं है। जो कुछ भी ये लोग करते हैं उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि यह परमेश्वर से सम्बन्धित नहीं है; यह उसके नाम एवं उसके वर्तमान कार्य दोनों से सम्बन्धित नहीं है। ये लोग स्वयं को ही लज्जित करते हैं, और शैतान को प्रकट करते हैं; ये बुरा काम करने वाले हैं जो क्रोध के दिन के लिए संचय कर रहे हैं। आज, उनके कार्यों की परवाह किए बगैर, और इस शर्त के साथ कि वे परमेश्वर के प्रबंधन को बाधित न करें और उनका परमेश्वर के नए कार्य के साथ कोई लेना देना न हो, ऐसे लोगों को अनुकूल दण्ड के अधीन नहीं किया जाएगा, क्योंकि क्रोध का दिन अभी तक नहीं आया है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का रीति व्यवहार" से
मनुष्य इसे नहीं जानता हैः यद्यपि पवित्र उद्धारकर्त्ता यीशु मनुष्य के प्रति स्नेह और प्रेम से भरपूर है, फिर भी वह अशुद्ध और अपवित्र आत्माओं के द्वारा वास किए गए "मन्दिरों" में कैसे कार्य कर सकता है? यद्यपि मनुष्य उसके आगमन का इन्तज़ार करता आ रहा है, फिर भी वह उनके सामने कैसे प्रकट हो सकता है जो अधर्मी का मांस खाते हैं, अधर्मी का रक्त पीते हैं, एवं अधर्मी के वस्त्र पहनते हैं, जो उस पर विश्वास तो करते हैं परन्तु उसे जानते नहीं हैं, और लगातार उस से जबरदस्ती माँगते रहते हैं?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "उद्धारकर्त्ता पहले से ही एक 'सफेद बादल' पर सवार होकर वापस आ चुका है" से
सबसे अधिक विद्रोही मनुष्य वह है जो जानबूझकर परमेश्वर की अवहेलना करता है और उसका विरोध करता है। वह परमेश्वर का शत्रु है और मसीह विरोधी है। ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के नए कार्य के प्रति निरंतर शत्रुतापूर्ण रवैया रखता है, ऐसे व्यक्ति ने कभी भी समर्पण करने का जरा सा भी इरादा नहीं दिखाया है, और कभी भी खुशी से समर्पण नहीं दिखाया है और अपने आपको दीन नहीं बनाया है। वह दूसरों के सामने अपने आपको ऊँचा उठाता है और कभी भी किसी के प्रति भी समर्पण नहीं दिख्ता है। परमेश्वर के सामने, वह स्वयं को वचन का उपदेश देने में सबसे ज़्यादा निपुण समझता है और दूसरों पर कार्य करने में अपने आपको सबसे अधिक कुशल समझता है। वह उस अनमोल ख़जाने को कभी नहीं छोड़ता है जो पहले से ही उसके अधिकार में है, बल्कि आराधना करने, दूसरों को उसके बारे में उपदेश देने के लिए, उन्हें अपने परिवार की विरासत मानता है, और उन मूर्खों को उपदेश देने के लिए उनका उपयोग करता है जो उसकी पूजा करते हैं। कलीसिया में वास्तव में कुछ संख्या में ऐसे लोग हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि वे "अदम्य नायक" हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी परमेश्वर के घर में डेरा डाले हुए हैं। वे वचन (सिद्धांत) का उपदेश देना अपना सर्वोत्तम कर्तव्य समझते हैं। साल दर साल और पीढ़ी दर पीढ़ी वे अपने "पवित्र और अनुलंघनीय" कर्तव्य को जोशपूर्वक लागू करने की कोशिश करते रहते हैं। कोई उन्हें छूने का साहस नहीं करता है और एक भी व्यक्ति खुलकर उनकी निन्दा करने का साहस नहीं करता है। वे परमेश्वर के घर में "राजा" बन गए हैं, और युगों-युगों से दूसरों पर क्रूरता पूर्वक शासन करते हुए उच्छृंखल चल रहे हैं। दुष्टात्माओं का यह झुंड संगठित होकर काम करता है और मेरे कार्य का विध्वंस करने की कोशिश करता है; मैं इन जीवित दुष्ट आत्माओं को अपनी आँखों के सामने अस्तित्व में रहने की अनुमति कैसे दे सकता हूँ?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के आज्ञाकारी हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाएँगे" से
वे जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में बाइबिल पढ़ते हैं, वे हर दिन बाइबिल पढ़ते हैं, फिर भी उनमें से एक भी परमेश्वर के काम के उद्देश्य को नहीं समझता है। एक भी परमेश्वर को नहीं जान पाता है; और यही नहीं, उनमें से एक भी परमेश्वर के हृदय के अनुरूप नहीं है। वे सबके सब व्यर्थ, अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पर खड़ा हैं। यद्यपि वे परमेश्वर के नाम पर धमकी देते हैं, किंतु वे जानबूझ कर उसका विरोध करते हैं। यद्यपि वे स्वयं को परमेश्वर का विश्वासी दर्शाते हैं किंतु ये वे हैं जो मनुष्यों का मांस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्मा को निगल जाते हैं, राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें विचलित करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाना चाहते हैं या सही मार्ग का प्रयास करते हैं, और वे बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट उत्पन्न होती हैं। यद्यपि वे 'मज़बूत देह' वाले हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे ईसा-विरोधी हैं जो लोगों को परमेश्वर के विरोध में ले जाते हैं? वे कैसे जानेंगे कि ये जीवित शैतान हैं जो निगलने के लिए विशेष रूप से आत्माओं को खोज रहे हैं?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "वे सब जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं वे ही परमेश्वर का विरोध करते हैं" से

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