35. परमेश्वर उन लोगों को क्यों विपत्तियों में डाल देगा जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करने से इनकार करते हैं?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
वे सभी जिनसे मैं प्रेम करता हूँ वे निश्चय ही अनन्त काल तक जीवित रहेंगे, और वे सभी जो मेरे विरूद्ध खड़े होते हैं उन्हें निश्चय ही मेरे द्वारा अनन्त काल तक ताड़ना दी जाएगी। क्योंकि मैं एक ईर्ष्यालु परमेश्वर हूँ, मैं उन सब के कारण जो मनुष्यों ने किया है उन्हें हल्के में नहीं छोडूँगा। मैं पूरी पृथ्वी पर निगरानी रखूँगा, और, संसार की पूर्व दिशा में धार्मिकता, प्रताप, कोप और ताड़ना के साथ प्रकट हो जाऊँगा, और मैं मानवता के असंख्य मेज़बानों पर स्वयं को प्रकट करूँगा!
"वचन देह में प्रकट होता है" से
मैं प्रत्येक व्यक्ति की मंज़िल आयु, वरिष्ठता, पीड़ा की मात्रा, और सबसे कम, दुर्दशा के अंश जिसे वे आमंत्रित करते हैं के आधार पर नहीं, बल्कि इस बात के अनुसार तय करता हूँ कि वे सत्य को धारण करते हैं या नहीं। इसे छोड़कर अन्य कोई विकल्प नहीं है। तुम्हें यह अवश्य समझना चाहिए कि वे सब जो परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण नहीं करते हैं दण्डित किए जाएँगे। यह एक अडिग तथ्य है। इसलिए, वे सब जो दण्ड पाते हैं, वे परमेश्वर की धार्मिकता के कारण और उनके अनगिनत बुरे कार्यों के प्रतिफल के रूप में इस तरह से दण्ड पाते हैं। …
मेरी दया उन पर व्यक्त होती है जो मुझसे प्रेम करते हैं और अपने आपको नकारते हैं। और दुष्टों को मिला दण्ड निश्चित रूप से मेरे धार्मिक स्वभाव का प्रमाण है, और उससे भी बढ़कर, मेरे क्रोध का साक्षी है। जब आपदा आएगी, तो उन सभी पर अकाल और महामारी आ पड़ेगी जो मेरा विरोध करते हैं और वे विलाप करेंगे। जो लोग सभी तरह की दुष्टता कर चुके हैं, किन्तु जिन्होंने बहुत वर्षों तक मेरा अनुसरण किया है, वे अभियोग से नहीं बचेंगे; वे भी, ऐसी आपदा जिसके समान युगों-युगों तक कदाचित ही देखी गई होगी, में पड़ते हुए, लगातार आंतक और भय की स्थिति में जीते रहेंगे। और केवल मेरे वे अनुयायी ही जिन्होंने मेरे प्रति निष्ठा दर्शायी है मेरी सामर्थ्य का आनंद लेंगे और तालियाँ बजाएँगे। वे अवर्णनीय संतुष्टि का अनुभव करेंगे और ऐसे आनंद में रहेंगे जो मैंने पहले कभी मानवजाति को प्रदान नहीं किया है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "अपनी मंज़िल के लिए तुम्हें अच्छे कर्मों की पर्याप्तता की तैयारी करनी चाहिए" से
नूह की कहानी के इस लेख में, क्या आप लोग परमेश्वर के स्वभाव के एक भाग को देखते हैं? मनुष्य की भ्रष्टता, अशुद्धता एवं उपद्रव के प्रति परमेश्वर के धीरज की एक सीमा है। जब वह उस सीमा तक पहुंच जाता है, तो वह आगे से और धीरज नहीं धरता है और इसके बजाए वह अपने नए प्रबंधन और नई योजना को शुरू करेगा, जो उसे करना है उसे प्रारम्भ करेगा, और अपने कार्यों और अपने स्वभाव के दूसरे पहलु को प्रगट करेगा। उसका यह कार्य यह दर्शाने के लिए नहीं है कि मनुष्य के द्वारा कभी उसका उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए या यह कि वह अधिकार एवं क्रोध से भरा हुआ है, और यह इस बात को दर्शाने के लिए नहीं है कि वह मानवता का नाश कर सकता है। यह ऐसा है कि उसका स्वभाव एवं उसका पवित्र सारतत्व आगे और अनुमति नहीं दे सकता है, और उसके स्वभाव एवं उसके सारतत्व के पास इस प्रकार की मानवता के लिए परमेश्वर के सामने जीवन बिताने हेतु, और उसकी प्रभुता के अधीन जीवन जीने हेतु आगे से और धीरज नहीं है। कहने का तात्पर्य है, जब सारी मानवजाति उसके विरुद्ध है, जब सारी पृथ्वी में ऐसा कोई नहीं है जिसे वह बचा सकता है, तो ऐसी मानवता के लिए उसके पास आगे से और धीरज नहीं होगा, और वह बिना किसी सन्देह के अपनी योजना को सम्पन्न करेगा - इस प्रकार की मानवता को नाश करने के लिए। परमेश्वर के द्वारा किए गए ऐसे कार्य को उसके स्वभाव के द्वारा निर्धारित किया जाता है। यह एक आवश्यक परिणाम है, और ऐसा परिणाम है जिसे परमेश्वर की प्रभुता के अधीन प्रत्येक सृजे गए प्राणी को सहना होगा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर I" से
आज, मैं न केवल उस बड़े लाल अजगर के राष्ट्र के ऊपर उतर रहा हूँ, बल्कि मैं पूरे विश्व की ओर भी मुड़ रहा हूँ, जिससे पूरा उच्चतम स्वर्ग कांप रहा है। क्या ऐसा कोई स्थान है जो मेरे न्याय से होकर नहीं गुज़रता है? क्या ऐसा कोई स्थान है जो उन विपत्तियों के अंतर्गत नहीं आता है जिसे मैं नीचे भेजता हूँ। मैं जहाँ कहीं भी जाता हूँ वहाँ मैं हर प्रकार के "विनाश के बीजों" को छितरा देता हूँ। यह एक तरीका है जिसके तहत मैं काम करता हूँ, और यह निःसन्देह मनुष्य के उद्धार का एक कार्य है, और जो मैं उसको देता हूँ वह अब भी एक प्रकार का प्रेम है। मैं चाहता हूँ कि अधिक से अधिक लोग मेरे बारे में जानें, और ज़्यादा से ज़्यादा लोग मुझे देखने के योग्य हो सकें, और इस तरह से परमेश्वर का आदर करने के लिए आएँ जिसे उन्होंने इतने सालों से नहीं देखा है, लेकिन जो आज वास्तविक है। मैंने किस कारण संसार को बनाया था? मैंने किस कारण से, जब मानवजाति भ्रष्ट हो गया, उनका सम्पूर्ण विनाश नहीं किया था? किस कारण से पूरी मनुष्य जाति विपत्तियों के अधीन जीवन बिताती है? किस कारण से मैंने स्वयं देहधारण किया था? जब मैं अपना कार्य कर रहा हूँ, तो मानवता उसका स्वाद जानता है और न केवल उसका कड़वा स्वाद बल्कि उसका मीठा स्वाद भी जानता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से
Source From :सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-परमेश्वर के वचनों के उद्धरणों
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