2019/05/24

परमेश्वर के विजय-कार्य का प्रधान लक्ष्य



  • परमेश्वर के वचनों का एक भजन
  • परमेश्वर के विजय-कार्य का प्रधान लक्ष्य
  •  I
  • तुम सबका पतन हो चुका है अंधेरे में,
  • गहरी चोट खा चुके हो तुम सब।
  • जानो तुम सब इंसानी प्रकृति,
  • और जिओ सत्य को, है लक्ष्य परमेश्वर के काम का।
  • अंधेरे से तुम बच सको अगर,
  • मैली चीज़ों से ख़ुद को दूर रख सको अगर,
  • पवित्र तुम बन सको अगर,
  • हैं इसके मायने कि है सत्य तुम्हारे पास।
  • इंसान का शुद्धिकरण
  • है विजय का प्रधान लक्ष्य,
  • ताकि सत्य धारण कर सके इंसान,
  • क्योंकि बहुत कम समझता है इंसान।
  • गहनतम मायने रखता है
  • विजय कार्य करना इन लोगों पर।
  • II
  • ऐसा नहीं है कि बदल जाती है प्रकृति तुम्हारी,
  • लेकिन सत्य पर अमल कर सकते हो तुम,
  • मोड़ सकते हो मुँह देह से तुम।
  • ऐसा ही करते हैं शुद्ध हो गये हैं जो।
  • सत्य को धारण करने, जीने वाले ही
  • पूरी तरह प्राप्त हो सकते हैं परमेश्वर को।
  • पतरस की तरह जो जीते हैं,
  • वो पूर्ण बनाए जाते हैं, बाकी जीत लिये जाते हैं।
  • इंसान का शुद्धिकरण
  • है विजय का प्रधान लक्ष्य,
  • ताकि सत्य धारण कर सके इंसान,
  • क्योंकि बहुत कम समझता है इंसान।
  • गहनतम मायने रखता है
  • विजय कार्य करना इन लोगों पर।
  • III
  • कार्य जो होता जीते गये जनों पर
  • शामिल है उसमें अभिशाप,
  • ताड़ना और रोष-प्रदर्शन।
  • पाते वो धार्मिकता और अभिशाप।
  • कार्य करने के मायने हैं इन जनों पर
  • उजागर करना उनके भीतर की भ्रष्टता को,
  • ताकि पहचानें इसे वो,
  • और हो जाएँ पूरी तरह आश्वस्त वो।
  • मानव आज्ञाकारी बन जायेगा जब,
  • हो जाएगा विजय-कार्य का समापन तब।
  • भले न खोजें सत्य को ज़्यादातर लोग,
  • अंत हो चुका होगा विजय-कार्य का।
  • इंसान का शुद्धिकरण
  • है विजय का प्रधान लक्ष्य,
  • ताकि सत्य धारण कर सके इंसान,
  • क्योंकि बहुत कम समझता है इंसान।
  • गहनतम मायने रखता है
  • विजय कार्य करना इन लोगों पर।
  • "वचन देह में प्रकट होता है" से
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