V. अंतिम दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य और अनुग्रह के युग में उसके छुटकारे के कार्य के बीच रहे अंतर से सम्बंधित सत्य के पहलू पर हर किसी को अवश्य गवाही देनी चाहिए
1. अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त वचनों और राज्य के युग में सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचनों में क्या अंतर है?
संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है" (मत्ती 4:17)।
"और यरूशलेम से लेकर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा" (लूका 24:47)।
"यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा।" (यूहन्ना 12:47-48)।
"क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए" (1पतरस 4:17)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
आरम्भ में, यीशु ने सुसमाचार को फैलाया और पश्चाताप के मार्ग का उपदेश दिया, फिर वह मनुष्य को बपतिस्मा देने लगा, बीमारियों को चंगा करने लगा, और दुष्टात्माओं को निकालने लगा। अंत में, उसने मानवजाति को पाप से छुटकारा दिया और सम्पूर्ण युग के अपने कार्य को पूरा किया।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "देहधारण का रहस्य (1)" से
यीशु का काम केवल मनुष्य के उद्धार और क्रूसित होने के लिए था। इस प्रकार, किसी भी व्यक्ति को जीतने के लिए उसे अधिक शब्द कहने की कोई जरूरत नहीं थी। उसने जो कुछ भी सिखाया उसमें से काफी कुछ शास्त्रों के शब्दों से लिया गया था, और भले ही उसका काम शास्त्रों से आगे नहीं बढ़ा, फिर भी वह क्रूसित होने के काम को पूरा कर पाया।