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2019/05/30

देहधारी परमेश्वर के कार्य और पवित्रात्मा के कार्य के बीच में क्या अंतर है?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यद्यपि देह में किए गए परमेश्वर के कार्य में अनेक अकल्पनीय मुश्किलें शामिल होती हैं, फिर भी वे प्रभाव जिन्हें वह अंततः हासिल करता है वे उन कार्यों से कहीं बढ़कर होते हैं जिन्हें आत्मा के द्वारा सीधे तौर पर किया जाता है। देह के कार्य में काफी कठिनाईयां साथ में जुड़ी होती हैं, और देह आत्मा के समान वैसी ही बड़ी पहचान को धारण नहीं कर सकता है, और आत्मा के समान उन्हीं अलौकिक कार्यों को क्रियान्वित नहीं कर सकता है, और वह आत्मा के समान उसी अधिकार को तो बिलकुल भी धारण नहीं कर सकता है।

2019/05/14

ऐसा क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर के कार्य के तीनों चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है?


परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है

मानवजाति का प्रबंधन करने के कार्य को तीन चरणों में बाँटा जाता है, जिसका अर्थ यह है कि मानवजाति को बचाने के कार्य को तीन चरणों में बाँटा जाता है। इन चरणों में संसार की रचना का कार्य समाविष्ट नहीं है, बल्कि ये व्यवस्था के युग, अनुग्रह के युग और राज्य के युग के कार्य के तीन चरण हैं।

2019/05/13

परमेश्वर के कार्य के तीनों चरणों में से प्रत्येक के बीच सम्बन्ध।

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यहोवा के कार्य से ले कर यीशु के कार्य तक, और यीशु के कार्य से लेकर इस वर्तमान चरण तक, ये तीन चरण परमेश्वर के प्रबंधन की पूर्ण परिसीमा को आवृत करते हैं, और यह समस्त एक ही पवित्रात्मा का कार्य है। जब से उसने दुनिया बनाई, तब से परमेश्वर हमेशा मानव जाति का प्रबंधन करता आ रहा है। वही आरंभ और अंत है, वही प्रथम और अंतिम है, और वही एक है जो युग का आरंभ करता है और वही युग का अंत करता है।

2019/05/12

परमेश्वर के कार्य के तीनों चरणों में से प्रत्येक के उद्देश्य और महत्व को जानना।

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
सूत्रपात करने के लिए थे, जो, इस्राएल को इसका केन्द्र लेते हुए, धीरे-धीरे अन्य जाति-राष्ट्रों में फैलते हैं। यही वह सिद्धांत है जिसके अनुसार वह तमाम विश्व में कार्य करता है—एक प्रतिमान स्थापना करना, और तब तक उसे फैलाना जब तक कि विश्व के सभी लोग उसके सुसमाचार को ग्रहण न कर लें। प्रथम इस्राएली नूह के वंशज थे। इन लोगों को केवल यहोवा की श्वास प्रदान की गई थी, और वे जीवन की मूल आवश्यकताओं को पर्याप्त रूप से समझते थे, किन्तु वे नहीं जानते थे कि यहोवा किस प्रकार का परमेश्वर है, या मनुष्य के लिए उसकी इच्छा को नहीं जानते थे, और यह तो बिलकुल भी नहीं जानते थे कि समस्त सृष्टि के प्रभु का सम्मान कैसे करें।

2019/05/11

तुम्हें परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के लक्ष्य को अवश्य जानना चाहिए।

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
कार्य के तीन चरणों का उद्देश्य समस्त मानवजाति का उद्धार है—जिसका अर्थ है शैतान के अधिकार क्षेत्र से मनुष्य का पूर्ण उद्धार। यद्यपि कार्य के इन तीन चरणों में से प्रत्येक का एक भिन्न उद्देश्य और महत्व है, किन्तु प्रत्येक मानवजाति को बचाने के कार्य का हिस्सा है, और उद्धार का एक भिन्न कार्य है जो मानवजाति की आवश्यकताओं के अनुसार किया जाता है।
जब परमेश्वर के प्रबंधन का सम्पूर्ण कार्य समाप्ति के निकट होगा, तो परमेश्वर प्रत्येक वस्तुओं को उनके प्रकार के आधार पर श्रेणीबद्ध करेगा।

2019/05/10

मानवजाति को प्रबंधित करने का काम क्या है?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
मानवजाति के प्रबंधन करने के कार्य को तीन चरणों में बाँटा जाता है, जिसका अर्थ यह है कि मानवजाति को बचाने के कार्य को तीन चरणों में बाँटा जाता है। इन चरणों में संसार की रचना का कार्य समाविष्ट नहीं है, बल्कि ये व्यवस्था के युग, अनुग्रह के युग और राज्य के युग के कार्य के तीन चरण हैं। संसार की रचना करने का कार्य, सम्पूर्ण मानवजाति को उत्पन्न करने का कार्य था। यह मानवजाति को बचाने का कार्य नहीं था, और मानवजाति को बचाने के कार्य से कोई सम्बन्ध नहीं रखता है, क्योंकि जब संसार की रचना हुई थी तब मानवजाति शैतान के द्वारा भ्रष्ट नहीं की गई थी, और इसलिए मानवजाति के उद्धार का कार्य करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

2019/05/09

परमेश्वर को भिन्न-भिन्न युगों में भिन्न-भिन्न नामों से क्यों पुकारा जाता है?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

प्रत्येक युग में,परमेश्वर नया कार्य करता है और उसे एक नए नाम से बुलाया जाता है;वह भिन्न-भिन्न युगों में एक ही कार्य कैसे कर सकता है?वह पुराने सेकैसे चिपका रह सकता है? यीशु का नाम छुटकारे के कार्यहेतु लिया गया था, तो क्या जब वह अंत के दिनों में लौटेगा तो तब भी उसे उसी नाम से बुलाया जाएगा?क्या वह अभी भी छुटकारे का कार्य करेगा? ऐसा क्यों है कि यहोवा और यीशु एक ही हैं, फिर भी उन्हें भिन्न-भिन्न युगों में भिन्न-भिन्न नामों से बुलाया जाता है? क्या यह इसलिए नहीं कि उनके कार्य के युग भिन्न-भिन्न हैं? क्या केवल एक ही नाम परमेश्वर का उसकी संपूर्णता में प्रतिनिधित्व कर सकता है? इस तरह, भिन्न युग में परमेश्वर को भिन्न नाम के द्वारा अवश्य बुलाया जाना चाहिए, उसे युग को परिवर्तित करने और युग का प्रतिनिधित्व करने के लिए नाम का उपयोग अवश्य करना चाहिए, क्योंकि कोई भी एक नाम पूरी तरह से परमेश्वर स्वयं का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है।

2019/05/03

परमेश्वर नामों को क्यों अपनाता है, क्या एक ही नाम परमेश्वर की सम्पूर्णता का प्रतिनिधित्व कर सकता है?

अध्याय 2 तुम्हें परमेश्वर के नामों की सच्चाईयों को अवश्य जानना चाहिए।

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
क्या यीशु का नाम, "परमेश्वर हमारे साथ," परमेश्वर के स्वभाव को उसकी समग्रता से व्यक्त कर सकता है? क्या यह पूरी तरह से परमेश्वर को स्पष्ट कर सकता है? यदि मनुष्य कहता है कि परमेश्वर को केवल यीशु कहा जा सकता है, और उसका कोई अन्य नाम नहीं हो सकता है क्योंकि परमेश्वर अपना स्वभाव नहीं बदल सकता है, तो ऐसे वचन ईशनिन्दा हैं! क्या तुम मानते हो कि यीशु नाम, परमेश्वर हमारे साथ, परमेश्वर का समग्रता से प्रतिनिधित्व कर सकता है? परमेश्वर को कई नामों से बुलाया जा सकता है, किन्तु इन कई नामों के बीच, एक भी ऐसा नहीं है जो परमेश्वर के स्वरूप को सारगर्भित रूप से व्यक्त कर सकता हो, एक भी ऐसा नहीं जो परमेश्वर का पूरी तरह से प्रतिनिधित्व कर सकता हो।

2019/05/02

केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने से ही उद्धार आ सकता है।

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
जब यीशु मनुष्य के संसार में आया, तो वह अनुग्रह का युग लाया, और उसने व्यवस्था का युग समाप्त किया। अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर एक बार फिर देहधारी बन गया, और इस बार जब उसने देहधारण किया, तो उसने अनुग्रह का युग समाप्त किया और परमेश्वर के राज्य का युग ले आया। उन सब को जो परमेश्वर के दूसरे देहधारण को स्वीकार करते हैं, राज्य के युग में ले जाया जाएगा, और वे व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर का मार्गदर्शन स्वीकार करने में सक्षम होंगे। यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया है, उसने केवल समस्त मानवजाति के छुटकारे के कार्य को पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना, मनुष्य को उसके भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया।

2019/04/26

सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही पुनः वापस आया यीशु है।

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर चीन की मुख्य भूमि में देहधारण किया है, जिसे हांगकांग और ताइवान में हमवतन के लोग अंतर्देशीय कहते हैं। जब परमेश्वर ऊपर से पृथ्वी पर आया, तो स्वर्ग और पृथ्वी में कोई भी इसके बारे में नहीं जानता था, क्योंकि यही परमेश्वर का एक गुप्त अवस्था में लौटने का वास्तविक अर्थ है। वह लंबे समय तक देह में कार्य करता और रहता रहा है, फिर भी इसके बारे में कोई भी नहीं जानता है। आज के दिन तक भी, कोई इसे पहचानता नहीं है। शायद यह एक शाश्वत पहेली रहेगा। इस बार परमेश्वर का देह में आना कुछ ऐसा नहीं है जिसके बारे कोई भी जानने में सक्षम नहीं है।

2019/04/25

सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही एक सच्चा परमेश्वर है जो सभी चीज़ों पर शासन करता है।

अध्याय 1 तुम्हें अवश्य जानना चाहिए कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही एक सच्चा परमेश्वर है जिसने आकाश और पृथ्वी और वह सब कुछ बनाया है जो कुछ उन में है।

मनुष्य नहीं जानता कि ब्रह्मांड की सत्ता किसके पास है, मानवजाति की उत्पत्ति और भविष्य तो वह बिल्कुल नहीं जानती। मानवजाति सिर्फ मजबूरन इन नियमों के अधीन रहती है। न तो इससे कोई बच सकता है और न ही कोई इसे बदल सकता है, क्योंकि इन सबके मध्य और स्वर्ग में केवल एक ही शाश्वत सत्ता है जो सभी पर अपनी सम्प्रभुता रखती है। और ये वह है जिसे कभी भी मनुष्य ने देखा नहीं है, जिसे मानवजाति ने कभी जाना नहीं है, जिसके अस्तित्व में मनुष्य ने कभी भी विश्वास नहीं किया, फिर भी वही एक है जिसने मानवजाति के पूर्वजों को श्वास दी और मानवजाति को जीवन प्रदान किया। वही मानवजाति के अस्तित्व के लिए आपूर्ति और पोषण प्रदान करता है, और आज तक मानवजाति को मार्गदर्शन प्रदान करता आया है।

2019/04/15

प्रश्न 1: बाइबल में लिखा है, "क्योंकि धार्मिकता के लिये मन से विश्‍वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुँह से अंगीकार किया जाता है" (रोमियों 10:10)। यीशु में अपने विश्वास के कारण हमें पहले ही बचा लिया गया है। एक बार बचा लिए जाने पर, हम अनंत काल के लिये बच जाते हैं। प्रभु के आने पर हम ज़रूर स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पा सकेंगे।

उत्तर: "एक बार हम बचा लिये जाते हैं तो हम हमेशा के लिये बच जाते हैं और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पा सकते हैं," ये इंसानी दिमाग की उपज और कल्पना है। ये बात परमेश्वर के वचनों से बिल्कुल मेल नहीं खाती। प्रभु यीशु ने कभी नहीं कहा कि विश्वास के कारण बचाए जाने पर लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पा सकते हैं। प्रभु यीशु ने कहा है कि जो स्वर्ग के पिता की इच्छा को पूरा करते हैं, केवल वही स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पा सकते हैं। केवल प्रभु यीशु के वचनों में ही अधिकार और सत्य है। इंसान की धारणाएं और कल्पनाएं सच नहीं होतीं। वे स्वर्ग के राज्य में जाने का पैमाना नहीं हैं। हम जिस "विश्वास के ज़रिए उद्धार" की बात करते हैं, इसमें इंसान को सिर्फ क्षमा किया जाता है, उसे मुजरिम नहीं ठहराया जाता कानूनन मौत की सज़ा नहीं दी जाती।

2019/04/14

प्रश्न 7: आज हम प्रभु यीशु में विश्वास करते हैं; उनके नाम को फैलाने के लिये इतना त्याग करते हैं, हर चीज़ छोड़ रहे हैं। हम स्‍वर्गिक पिता की इच्छा का पालन ही तो कर रहे हैं। इसका मतलब है कि हम पवित्र बन चुके हैं। जब प्रभु आएंगे तो वो ज़रूर हमें स्वर्ग के राज्य में स्वर्गारोहित करेंगे।

उत्तर: जहां तक सवाल है कि स्वर्ग के राज्य में कौन प्रवेश कर सकता है: प्रभु यीशु ने कहा था, "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21)। प्रभु यीशु ने साफ तौर पर हमसे कहा है कि जो स्वर्ग के पिता की इच्छा पूरी कर सकता है, वही स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता है। भाइयो और बहनो, ये बात सही है कि लोग प्रभु का नाम फैलाने के लिये हर चीज़ का त्याग करते हैं, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि वो पाप भी अधिक कर रहे हैं। पाप करने का मतलब है कि वे शैतान के साथ हैं और अभी भी गंदे और दूषित हैं। वे अभी भी परमेश्‍वर का विरोध कर सकते हैं, धोखा दे सकते हैं।

2019/04/13

प्रश्न 6: हम सब-कुछ त्याग दें, प्रभु के सुसमाचार का प्रचार करें और कलीसिया की देखभाल करें। इस तरह के कामों से हम स्वर्ग के पिता की इच्छा को पूरा कर पाएंगे। इस तरह से अभ्यास करना क्या कोई गलत है?

उत्तर: प्रभु के सुसमाचार को फैलाना और उनके लिये कार्य करना ही स्वर्ग के पिता की इच्छा को पूरा करना नहीं होता। स्वर्ग के पिता की इच्छा को पूरा करने के लिये ज़रूरी है कि प्रभु के रास्ते पर चला जाए और उनके आदेशों का पालन किया जाए। इंसान अपना फ़र्ज़ उसी तरह निभाये जैसा प्रभु चाहते हैं। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा है, "तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है। और उसी के समान यह दूसरी भी है कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख" (मत्ती 22:37-39)। जहां तक स्वर्ग के पिता की इच्छा को पूरा करने की बात है, तो उसके लिये सबसे ज़रूरी है कि प्रभु यीशु के आज के वचनों का पालन किया जाए।

2019/04/12

प्रश्न 4: हम सभी ने कई वर्षों तक प्रभु में विश्वास किया है, और प्रभु के लिए अपने कार्य में हमेशा पौलुस के उदाहरण का पालन किया है। हम प्रभु के नाम और उनके मार्ग के प्रति निष्ठावान रहे हैं, और धार्मिकता का ताज निश्चय ही हमारी प्रतीक्षा कर रहा है। आज, हमें केवल प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करने और उनकी वापसी की ओर देखने की आवश्यकता है। केवल इस प्रकार से ही हमें स्वर्ग का राज्य में ले जाया जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बाइबल में ऐसा कहा गया है कि "मेरी बाट जोहनेवाले कभी लज्जित न होंगे" (यशायाह 49:23)। हमें प्रभु के वादे में विश्वास है: वे अपने लौटने पर हमें स्वर्ग का राज्य में ले जाएँगे। क्या इस ढंग से कार्य-अभ्यास करने में वास्तव में कुछ गलत हो सकता है?

उत्तर: प्रभु के आगमन के लिए प्रतीक्षा करने में, ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि सीधे स्वर्ग का राज्य में ले जाए जाने के लिए उन्हें केवल प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करने और प्रभु के आगमन पर पौलुस के उदाहरण का अनुसरण करने की जरूरत है। इस तरह से कार्य-अभ्यास करना उन्हें सही लगता है, और इससे कोई भी असहमत नहीं है। तब भी परमेश्वर में विश्वास करने वाले हम लोगों को हर चीज में सत्य की तलाश करनी चाहिए। हालांकि इस तरह से कार्य-अभ्यास करना लोगों की अवधारणाओं के अनुरूप है, किंतु क्या यह परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप भी है? मुझे लगता है हमें जानना चाहिए कि: परमेश्वर के वचन हमारे कार्यों के सिद्धान्त हैं, ये वे आदर्श हैं जिनसे सभी लोगों, वस्तुओं और विषयों को मापा जाता है।

2019/04/11

प्रश्न 2: सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में अपने न्याय का कार्य कैसे करते हैं? वे अपने वचनों से इंसान का न्याय कैसे करते हैं, उसे शुद्ध कैसे करते हैं और उसे पूर्ण कैसे करते हैं? ये जानने के लिए हम बेताब हैं। अगर हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य समझते हैं, तो हम लोग सचमुच परमेश्वर की वाणी सुन सकते हैं और हमें परमेश्वर के सिंहासन के सामने उन्नत किया जा सकता है। हमें ज़रा और विस्तार से बताइये!

उत्तर: अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर अपना कार्य किस तरह करते हैं, इस बात को समझना सत्य का अनुसरण करके उद्धार पाने की हमारी क्षमता के लिए बहुत आवश्यक है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में सत्य व्यक्त करके लोगों का न्याय और उन्हें शुद्ध करते हैं। वे मात्र अपने संतों को स्वर्ग के राज्य में उठाने के लिए ऐसा करते हैं। इसके बावजूद धार्मिक समुदाय में बहुत से विश्वासी परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझते। उन्हें लगता है कि प्रभु वापस आकर सभी संतों को सीधे स्वर्ग के राज्य में उन्नत कर देंगे।

2019/04/10

प्रश्न 1: कि प्रभु यीशु ने हमारे लिए सलीब पर जान दी, उन्होंने हमें पापों से छुड़ाया, और हमारे पापों को क्षमा किया, भले ही हमारा पाप करना जारी है और हमारा अभी शुद्ध होना बाकी है, प्रभु ने हमारे सभी पापों को क्षमा कर हमारी आस्था के ज़रिये हमें न्यायपूर्ण बना दिया है। मुझे लगा कि प्रभु के लिये सबकुछ त्याग करने, यातना सहन करने और कीमत अदा करने की हमारी इच्छा, हमें स्वर्ग के राज्य में प्रवेश दिलाएगी। मुझे लगा, हमारे लिये यही प्रभु की प्रतिज्ञा है। लेकिन कुछ लोगो ने इस पर सवाल उठाया है। उनके अनुसार, चाहे हमने प्रभु के लिए श्रम किया, हम अभी भी पाप करके उन्हें स्वीकार करते हैं, इसलिए हम अभी तक अशुद्ध हैं। उनके अनुसार प्रभु पवित्र हैं, इसलिए अपवित्र लोग उनसे नहीं मिल सकते। मेरा सवाल है: हम लोगों ने प्रभु के लिए अपना सब-कुछ बलिदान कर दिया, क्या हमें स्वर्ग के राज्य में ले जाया जा सकता है? दरअसल हमें इस सवाल का उत्तर नहीं पता, इसलिए हम चाहते हैं कि आप हमें इस बारे में बताएँ।

उत्तर: प्रभु के सभी विश्वासियों का मानना है: प्रभु यीशु ने सलीब पर दम तोड़कर हमें मुक्ति दिला दी, तभी हम सभी पापों से मुक्त हुए हैं प्रभु हमें पापी नहीं मानते। हम अपने, विश्वास के ज़रिये धर्मी बन गए हैं। अगर हम अंत तक सहन करते रहे तो हम बचा लिये जाएँगे। जब प्रभु आएँगे, तो वे सीधे ही हमें स्वर्ग के राज्य में आरोहित कर देंगे। तो क्या ये वाकई सच है? क्या परमेश्वर ने इस दावे के समर्थन में अपने वचनों में कभी कोई सबूत दिया है? यदि यह दृष्टिकोण सत्य के अनुरूप न हो तो इसके परिणाम क्या होंगे? हम प्रभु के विश्वासियों को हर बात के लिये, अपने आधार के रूप में उनके वचनों का उपयोग करना चाहिए।

2019/04/09

प्रप्रश्न 4: प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों को स्वर्ग का राज्य के रहस्यों के बारे में बताया, और क्या प्रभु यीशु की वापसी के रूप में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने भी अनेक रहस्य उजागर किए हैं? क्या आप लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा प्रकट किए गए कुछ रहस्यों के बारे में हमारे साथ संगति कर सकते हैं? इससे परमेश्वर की वाणी पहचानने में हमें बहुत सहायता मिलेगी।

उत्तर: प्रत्येक बार जब परमेश्वर देहधारण करते हैं, वे हमारे लिए अनेक सत्यों और रहस्यों को प्रकट करते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं। मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर देहधारण करते हैं, और इसलिए स्वाभाविक रूप से वे अनेक सत्यों को अभिव्यक्त करते हैं, और अनेक रहस्यों को प्रकट करते हैं। उदाहरण के लिए, अनुग्रह के युग में, देहधारी परमेश्वर, प्रभु यीशु ने उपदेश देने और अपना कार्य करने के क्रम में अनेक रहस्यों को प्रकट किया, "मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है" (मत्ती 4:17)। "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा: परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21)। इसके अतिरिक्त, प्रभु यीशु ने और भी अनेक रहस्य प्रकट किए, जिनके बारे में मैं अभी नहीं बोलूँगी।

2019/04/02

प्रश्न 2: भाई डिंग ने अभी कुछ अराजक कामों के बारे में बात की थी, इसलिए जब आप कहते हैं कि अराजकता बढ़ रही है, तो आपका मतलब ऐसे कौन से ख़ास कामों से होता है?

उत्तर: अराजकता बढ़ने का अक्‍सर अर्थ होता है कि वे पादरी, एल्डर्स और अगुवा परमेश्‍वर की इच्छा के विपरीत जाकर अपनी ख़ुद की राह पर चल रहे हैं। वे परमेश्‍वर की आज्ञाओं का अनुसरण नहीं करते, और लोगों को बंधन में जकड़ने, नियंत्रण में रखने और धोखा देने के लिए बाइबल की गलत व्याख्या करते हैं; उन्हें बाइबल संबंधित धर्मशास्त्र में डुबो कर, परमेश्‍वर से दूर ले जाते हैं, और कलीसिया को धार्मिक कर्मकांड की जगह में बदलते हुए, अपने दायित्‍वों और कर्तव्यों को वे अपनी प्रतिष्ठा और कमाई का जरिया समझने लगते हैं, जो कलीसिया में परमेश्‍वर का विरोध करने वाले कई पाखण्डी कार्यों की ओर ले जाता है।

2019/04/01

प्रश्न 1: पिछले कुछ सालों में हमने हमारे कलीसीया में बढ़ती हुई वीरानी को महसूस किया है। हमने अपने शुरुआती विश्वास और प्यार को खो दिया है, हम कमज़ोर और ज्‍़यादा नकारात्मक बन गए हैं। यहां तक कि कभी-कभी हम उपदेशक भी खोया-खोया महसूस करते हैं, और नहीं जानते कि किस बारे में बात करनी है। हमें लगता है कि हमने पवित्र आत्मा का कार्य खो दिया है। हमने पवित्र आत्मा के कार्य वाली किसी कलीसिया के लिए भी हर जगह खोज की। लेकिन जिस भी कलीसिया को हमने देखा, वह हमारी कलीसिया की तरह ही वीरान है। इतनी सारी कलीसियाएं भूखी और वीरान क्यों हैं?


उत्तर: आपका सवाल महत्वपूर्ण है। हम सभी जानते हैं कि हम अंत के दिनों की आखरी अवस्‍था में रहते हैं। प्रभु यीशु ने एक बार भविष्यवाणी की थी: "अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा पड़ जाएगा" (मत्ती 24:12)। धर्म की दुनिया में अराजकता बढ़ रही है। धार्मिक अगुवा प्रभु की आज्ञाओं का पालन नहीं करते, सिर्फ़ मनुष्यों की परंपराओं का पालन करते हैं। वे सिर्फ़ दिखावे के लिए बाइबल के ज्ञान का उपदेश देते हैं और ख़ुद की गवाही देते हैं। वे परमेश्‍वर की गवाही नहीं देते या उनकी बिल्कुल भी प्रशंसा नहीं करते हैं, और वे पूरी तरह से प्रभु के मार्ग से भटक गए हैं, यही कारण है कि परमेश्‍वर उन्हें अस्वीकार करते और खत्‍म करते हैं। धार्मिक जगत के पवित्र आत्मा के कार्यों को गंवाने का यही खास कारण है।

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